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________________ अनुक्रमणिका 79:०: इस अनुक्रमणिका में जैन मुनि, आर्यिका, कवि व संघ, गण, गच्छ और ग्रन्थोंके नाम ही समाविष्ट किये गये हैं। नाम के पश्चात् ही जो अंक दिये गये हैं उनसे लेख-नम्बर का अभिप्राय है। भू. के पश्चात् जो अंक दिये गये हैं वे भूमिका के पृष्ठ-नम्बर हैं। इस अनुक्रमणिका में निम्न लिखित संकेताक्षरों का प्रयोग किया गया है: उ०-उपाधि । गं० वि०=गंडविमुक्त । त्रै० च० विद्यचक्रवर्ती । त्रै यो० त्रैकाल्ययोगी । पं०=पंडित । पं० आ०=पंडिताचार्य । भ०= भट्टारक। म०-मलधारी। म० दे०=मलधारि देव । सि० च०=सिद्धान्तचक्रवर्ती । सि० दे० सिद्धान्त देव । सै० सैद्धान्तिक । श्वे० श्वेताम्बर । अजितसेन व अजितभट्टारक ३८,५४, अकम्पन १०५. भू. १२५. ६०. भू० २६, ७२-७४, १४०, अकलंक ४०, ४७, ५०, ५४, १०८, १५२. ४९३. भू० ७९, ११२, १३५, अध्यात्मि बालचन्द्र, नयकीर्ति के शिष्य १३७, १३९, १४४, १४५. (देखो बालचन्द्र) ७०, ८१, ९०. अकलंक त्रैविद्य, देवकीर्ति के शिष्य ४०. अनन्तकवि, बेल्गोलद गोम्मटेश्वर चरित अकलंक पंडित १६९. भू० ११७, ___ के कर्ता भू० ५, २७, ३३, ४८. १५३. अनन्तकीर्ति, वीरनन्दि के शिष्य, ४१. अक्षयकीर्ति १५८ भु. १५१. अनन्तामति गन्ति ( आर्यिका) २८. अग्निभूति १०५ भू० १२५. अनुबद्धकेवली १०५. अचल १०५ भू० १२८. | अन्धवेल १०५ भु० १२५. अजितकीर्ति, चारुकीर्ति के शिष्य ७२ | अपराजित १, १०५ भू० ६०, ६२, भू. १६२. १२५. अजितकीर्ति, शान्तिकीर्ति के शिष्य | अभयचन्द्र, नन्दि माघनन्दि के शिष्य ७२. ४१, १०५, भु० १३०, १३५. अजितपुराण. कविचक्रवर्तिकृत भू० अभयचन्द्र, त्रै०च०, गोम्मटसारवृत्ति के ११७. __कर्ता भू० ७२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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