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आसपास के ग्रामों के अवशिष्ट लेख (स्वदत्तां परदत्ता वा-इत्यादि श्लोकों के पश्चात् श्रीमन्महाप्रधान हिरिय दण्डाधिप.........मय्यङ्ग..
[चन्नरायपट्टन १४८] इस लेख में होयसल नरेश विनयादित्य और उनके पुत्र एरेयङ्ग की कीत्ति के पश्चात् कहा गया है कि त्रिभुवनमल एरेयङ्ग ने उक्त तिथि को कल्बप्पु पर्वत की वस्तियों के जीर्णोद्धार तथा श्राहारदान व बर्तन वस्त्र आदि के लिए अपने गुरु मूलसंघ देशीगण कुन्दकुन्दान्वय के देवेन्द्रसैद्धान्तिक व चतुम्मुखदेव के शिष्य, गोपनन्दि पण्डितदेव को राचनहल्लै व बेल्गोल १२ का दान दिया। लेख में गोपनन्दि प्राचार्य की खूब कीर्ति वर्णित है। उन्होंने जो जैनधर्म स्थगित हो गया था उसकी गङ्गनरेशों की सहायता से विभूति बढ़ाई। उन्होंने सालय, भौतिक, वैशेषिक, बौद्ध, वैष्णव, चार्वाक जैमिनि आदि सिद्धान्तवादियों को परास्त किया इत्यादि । ]
चल्लग्राम के बयिरेदेव मन्दिर में ।
एक पाषाण पर
(शक सं० १०४७) श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात्रलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १ ॥
स्वस्ति समधिगतपञ्चमहाशब्द महामण्डलेश्वर द्वारावतीपुरवरेश्वर यादवकुलाम्बरा मणि सम्यक्तचूड़ामणि मलप
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