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________________ ३५८ नगर में के प्रवशिष्ट लेख .. [धर्मस्थल के कोमार हेग्गडि ने आकर कृष्णराज वडयर के समय की एक सनद पेश की जिसमें किक्करि तालुका के कबालु नामक ग्राम का बेल्गुल के चिक्कदेवराय के समीप की दानशाला के हेतु दान दिये जाने का उल्लेख था। इसी सनद के अनुसार उक्त तिथि को पूर्णय्य ने यह सनद दे दी कि उक्त ग्राम की श्राय, जो उस समय ८० वराह थी, उक्त दानशाला और बेल्गुल के सठ के हेतु काम में लायी जाय । भविष्य में श्राय में जो वृद्धि हो वह भी इसी हेतु खर्च की जाय यह सनद उक्त तिथि को सरकारी दफ्तर में नकल कर ली गई।। ४३४ ( ३५४) मुम्मडि कृष्णराज ओडेयर की सनद उसी मठ में कागज पर श्रीकण्ठाच्युत-पद्मजादि-द्विषद्-वक्रोद्ध-तेजःछटासम्भूतामतिभीषण-प्रहरण-प्रोद्भासि बाहाष्टकां । गर्जत्-सरिभ-दैत्य-पातित-महा-शूलां त्रिलोकी-भयप्रोन्माथ-व्रत-दीक्षितां भगवती चामुण्डिकां भावये ॥१॥ निदानं सिद्धानां निखिल जगतां मूलमनघं प्रमाण लोकानां प्रणय-पदमप्राकृतगिरां । पर वस्तु श्रीमत् परम-करुणासार-भरित प्रमोदानस्माकं दिशतु भवतामप्यविकल ॥२॥ हरेमला-वराहस्य दंष्ट्रा-दण्डस्स पातु नः । हेमाद्रि-कलशा यत्र धात्री छत्र-श्रियं दधौ ॥ ३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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