________________
श्रवण बेल्गोल नगर में के शिलालेख २५३ तप्पल हासरे-गल्लु । पाल्ल मूडय देवलङ्ग रेय तेङ्कण कोडिय गुण्डिनलि बरद मुक्कोडे हसुबे नेट्टे श्रा-केरे-नीरोतिले सीमे । पाकेरेय बडगण-कोडिय गुण्डि-नल्लि बरद मुक्कोडे हसुबे नेट्टे इन्तीकेरेयु किरु-कटे वालगाद चतुस्सीमेय गद्दे ॥
[ इस लेख में कुमुदचन्द्र और माघनन्दि को नमस्कार के पश्चात् होयसल वश की कीर्ति का उल्लेख है और फिर कहा गया है कि उक्त तिथि को इंगलेश्वर, देशिय गण, मूलसंघ के नेमिचन्द्र पण्डितदेव के शिष्य बालचन्द्रदेव और बेल्गोल के समस्त जौहरियों (माणिक्य नगरङ्गल) ने नगर जिनालय के श्रादिदेव की पूजन के हेतु कुछ भूमि का दान दिया । यह भूमि उन्होंने बालचन्द्रदेव से खरीद की थी। ये जौहरी होम्सलवश के राजगुरु महामण्डलाचार्य माघनन्दि के शिष्य थे। लेख के प्रथम पद्य में शास्त्रसार नामक किसी शास्त्र के कर्ता का उल्लेख रहा है । यह पद्य घिस जाने से प्राचार्य का नाम नहीं पढ़ा गया |
१३० ( ३३५) नगर जिनालय में उत्तर की ओर
(शक सं० १११८) श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याद्वादामोघ-लाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्य-नाथस्य शासनं जिन-शासनं ॥ १॥ स्वस्ति-श्रीजन्म-गेहं निभृत-निरुपमावा॑नलोद्दामत्त विस्तारान्तःकृतोर्वीतलममल-यशश्चन्द्र-सम्भूति-धामं । वस्तु-बातोद्भव-स्थानकमतिशय-सत्वावलम्ब गभीर प्रस्तुत्यं नित्यमम्भा-निधि-निभमेसगुं होय्सलोज़श-वंश
॥२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org