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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख
जनविनुत सिरिय देविय ननुनयदि पोगल्वुदखिल भूतलवेल्ल ॥ ८ ॥ वचन ॥ श्रा महानुभावनवसानकालदोलु ॥ परमश्री जिनपादपङ्करुहमं सद्भक्तिथिं ताल्दि निउर्भरदिं पञ्चपदङ्गलं नेनेयुतं दुम्मेहसन्दोहमं । त्वरितं खण्डितं समाधिविधियिं भव्याब्जिनीभास्करं निरुत पेडे सिङ्गिमय्यनमरेन्द्रावास मं पोर्दिदं ॥ ८ ॥ समधिगतपश्च महाकल्याणाष्ट महाप्रातिहार्य चतुस्त्रिंशदतिशयविराजमान भगवदर्हत्परमेश्वर-परमभट्टारक - मुखकमलविनिर्गतसदसदा दिवस्तुस्वरूपनिरूपणप्रवण-राद्धान्तादिसकलशास्त्रपारावारगपरमतपश्चरण निरतरुमप्प प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेवर गुड्डि नागियक सिरियव्वेयुं सकवर्ष १०४१ नेय सिद्धार्थसम्बत्सरद कार्त्तिक सुद्ध द्वादस सेामवारदन्दु महापूजेयं माडिनिशिधियं निरिसिद ॥
श्रीमन्मण्डलाचार्य
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[ महाधर्मवान्, कीत्तिवान् और बलवान् दण्डनायक बलदेव और उसकी धर्मपत्नी बाचिकबे का पुत्र सिङ्गिमय हुआ जो उदारचरित और गुणवान् था । उसकी धर्मपत्नी का नाम सिरिय देवी था । सिमिय ने समाधिमरण कर स्वर्गलोक प्राप्त किया । मण्डलाचार्य प्रभाचन्द्र के शिष्य सिरियब्बे और नागियक ने सिङ्गिमय्य की स्मृति में शक सं० १०४१ कार्त्तिक सुदि १२ सोमवार को यह निषद्या निर्माण कराई ] [ नाट-- जैसा कि लेख नं० ११ के नोट में कहा जा चुका सं० १०४१ सिद्धार्थी नहीं था जैसा कि इस लेख में भी भूल गया है ]
है शक
से कहा
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