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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । [ इस लेख में नागदेव मंत्री द्वारा अपने गुरु श्री नयकीर्त्ति योगीन्द्र की निषद्या निर्माण कराये जाने का उल्लेख है । नयकीर्त्तिमुनि का स्वर्गचास शक सं० १०६६ वैशाख शुक्ल १४ को हुआ था। मुनि की विस्तार - सहित वर्णन की हुई गुरु-परम्परा में निम्नलिखित श्राचार्यों का उल्लेख आया है । पद्मनन्दि अपर नाम कुन्दकुन्द, उमास्वाति गृद्धपिच्छ, बलाकपिच्छ, गुणनन्दि, देवेन्द्र सैद्धान्तिक, कलधौतनन्दि, रविचन्द्र अपर नाम सम्पूर्णचन्द्र दामनन्दिमुनि, श्रीधरदेव, मलधारिदेव, श्रीधरदेव, माघनन्दि मुनि, गुणचन्द्रमुनि, मेवचन्द्र, चन्द्रकीत्ति भट्टारक और उदयचन्द्र पण्डितदेव । नयकीत्ति गुणचन्द्रमुनि के शिष्य थे और उनके धर्म गुणचन्द्र मुनि के पुत्र माणिक्यनन्दि थे । उनकी शिष्यमण्डली में मेवचन्द्र व्रतीन्द्र, मलधारिस्वामी, श्रीधरदेव, दामनन्दि " विद्य, भानुकीर्त्ति मुनि, बालचन्द्र मुनि, माघनन्दि मुनि, प्रभाचन्द्र मुनि, पद्मनन्दि मुनि और नेमिचन्द्र मुनि थे । ] ४२ ४३ (११७ ) चामुण्डराय वस्ति के दक्षिण की ओर मण्डप में प्रथम स्तम्भ पर ( शक सं० १०४५ ) ( पूर्वमुख ) श्रीमत्परम गम्भीर - स्याद्वादामोघ लाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिन - शासनं ॥ १ ॥ श्रीमन्नाभेयनाथायमल- जिनवरानीक साधोरु-वाद्धि: प्रध्वस्ताघ-प्रमेय-प्रचय-विषय- कैवल्य-बोधोरु-वेदिः । शस्तस्यात्कार मुद्रा - शबलित जनतानन्द-नादोरुघोषः स्थेयादा चन्द्रतारं परम सुख -महा-वी वी ची -निकायः ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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