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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । उच्चण्ड-मदन-मद-गज-निर्भेदन-पटुतर-प्रताप-मृगेन्द्रः । भव्य-कुमुदाघ-विकसन-चन्द्रो भुविभाति बालचन्द्र-मुनीन्द्रः ॥३४॥ ताराद्रि-क्षीर-पूर-स्फटिक-सुर-स रित्तारहारेन्दु-कुन्द- श्वेतोद्यकीति-लक्ष्मी-प्रसर-धवलिताशेषदिक्-चक्रवालः । श्रीमसिद्धान्त-चक्रेश्वर-नुत-नयकीर्ति-व्रतीशाङ्घि भक्तः (उत्तर मुख) श्रीमान्भट्टारकेशो जगति विजयते मेघचन्द्र-व्रतीन्द्रः ।।३।। गाम्भीर्ये मकराकरो वितरणे कल्पद्रुमस्तेजसि प्रोच्चण्ड-घुमणिः कलास्वपि शशी धैर्ये पुनर्मन्दरः । सोज़-परिपूर्ण-निर्मल-यशो-लक्ष्मी-मना-रजनो भात्यस्यां भुवि माघनन्दिमुनिपो भट्टारकाग्रेसरः ॥३६।। वसुपूर्णसमस्ताश:क्षितिचक्रे विराजते । चञ्चत्कुवलयानन्द-प्रभाचन्द्रोमुनीश्वरः ॥३७।। तत्सधर्मर ।। उच्चण्डग्रहकोटयो नियमितास्तिष्ठन्ति येन क्षिती यद्वाग्जातसुधारसोऽखिलविषव्युच्छेदकश्शोभते । यत्तन्त्रोद्धविधिःसमस्तजनतारोग्याय संवर्त्तते सोऽयं शुम्भति पद्मनन्दिमुनिनाथो मन्त्रवादीश्वरः ॥३८॥ तत्सधर्मर ॥ चञ्चच्चन्द्र-मरीचि-शारद-घन-क्षोराब्धि-ताराचलप्रोद्यत्कीति-विकास-पाण्डुर-तर-ब्रह्माण्ड-भाण्डोदरः । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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