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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । नतेमतियोल प्रवीणते नयागम-तर्क-विचारदोल सुपूज्यते तपदोल पवित्रते चरित्रदोलोन्दि विराजिसल प्रसिद्धते मुनि-देवकीर्तिविबुधाप्रणिगोप्पुवुदी धरित्रियोल ॥ ५ ॥ शकवर्षसासिरद एम्भत्तय्देनेय ॥ वर्षे ख्यात-सुभानु-नामनि सिते पक्षे तदाषाढ़के मासे तनवमीतिया बुध-युते वारे दिनेशोदये। श्रीमत्तार्किकचक्रवर्ति-दशदिग्वौद्धकीर्तिप्रियो जातः स्वर्गवधूमन:प्रियतमः श्रीदेवकीर्त्तिव्रती ॥ ६ ॥ जातेकीर्त्यवशेषके यतिपती श्रीदेवकीर्तिप्रभा वादीभेभरिपो जिनेश्वर-मत-क्षीराब्धितारापतौ । क स्थानं वरवाग्वधूजिनमुनिब्रातं ममेति स्फुटं चाक्रोशं कुरुते समस्तधरणौ दाक्षिण्य-लक्ष्मीरपि ॥ ७॥ तच्छिष्यो नुतलक्खणन्दिमुनिपः श्रीमाधवेन्दुव्रती भव्याम्भोरुहभास्करत्रिभुवनाख्यानश्चयोगीश्वरः । एते ते गुरुभक्तितो गुरुनिषद्यायाः प्रतिष्ठामिमां भूत्याकाममकारयन्निजयशस्सम्पूर्णदिग्मण्डलाः ॥८॥ [इस लेख में अपने समय के अद्वितीय कवि, तार्किक और वक्ता महामण्डलाचार्य मुनि देवकीर्ति पण्डित की विद्वत्ता का व्याख्यान है। इस समय जैनाचार्य के सन्मुख सांख्यिक, चार्वाक, नैयायिक, वेदान्ती. बौद्ध आदि सभी दार्शनिक हार मानते थे। ___शक सं० १०८५ सुभानु संवत्सर आषाढ़ शुक्ल बुधवार को सूर्योदय के समय इन तार्किक चक्रवर्ति श्री देवकीर्त्ति मुनि का स्वर्ग
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