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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । [इस लेख में गङ्गराज मारसिंह के प्रताप का वर्णन है । इसमें कथन है कि मारसिंह ने ( राष्ट्र कूट नरेश) कृष्णराज ( तृतीय) के लिए गुर्जर देश को विजय किया; कृष्णराज के विपक्षी अल्ल का मद चूर किया; विन्ध्य पर्वत की तली में रहने वाले किरातों के समूहों को जीता; मान्यखेट में नृप ( कृष्णराज) की सेना की रक्षा की; इन्द्रराज (चतुर्थ) का अभिषेक कराया; पातालमल्ल के कनिष्ठ भ्राता वज्जल को पराजित किया; वनवासीनरेश की धन सम्पत्ति का अपहरण किया; माटूर वंश का मस्तक झुकाया; नालम्ब कुल के नरेशों का सर्वनाश किया; काडुवट्टि जिस दुर्ग को नहीं जीत सका था उस उच्चङ्गि दुर्ग को स्वाधीन किया; शवराधिपति नरग का संहार किया; चौड़ नरेश राजादित्य को जीता; तापी-तट, मान्यखेट. गोनूर, उच्चङ्गि, बनवासि व पाभले के युद्ध जीते, व चेर, चोड़, पाण्ड्य और पल्लव नरेशों को परास्त किया व जैन धर्म का प्रतिपालन किया और अनेक जिन मन्दिर बनवाये। अन्त में उन्होंने राज्य का परित्याग कर अजितसेन भट्टारक के समीप तीन दिवस तक सल्लेखना व्रतका पालन कर बंकापुर में देहोत्सर्ग किया। लेख में वे गङ्ग चूडामणि, नालम्बान्तक, गुत्तिय-गङ्ग, मण्डलिकत्रिनेत्र, गङ्गविद्याधर, गङ्गकन्दर्प, गङ्गबज्र, गङ्गसिंह, सत्यवाक्य कोङ्गणिवर्म-धर्ममहाराजाधिराज श्रादि अनेक पदवियों से विभूषित किये गये हैं।]
३६ (६३) महनवमी मण्डप में
(शक सं० १०८५) (पूर्वमुख)
श्रीमत्परमगम्भीर-स्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ १॥
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