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________________ प्रत्ययवाद और वस्तुवाद हमारे सामने दो जगत् हैं—परम अस्तित्व और अपर अस्तित्व। प्रत्ययवादी (या आदर्शवादी) दार्शनिक अपर अस्तित्व को वास्तविक नहीं मानते । उनके मतानुसार चेतना से बाहर कुछ नहीं है । भारतीय दार्शनिकों में इस सिद्धांत का प्रतिपादन वेदान्त ने किया। पश्चिमी दार्शनिकों में इस सिद्धांत के प्रतिपादक कान्ट, फिक्ट, शेलिंग, हेगेल, ग्रीन, जेम्स वार्ड आदि दार्शनिक हैं। वस्तुवादी दार्शनिक अपर अस्तित्व को वास्तविक मानते हैं। उनके मतानुसार अपर अस्तित्व चेतना-निरपेक्ष है, स्वतंत्र है। भारतीय दार्शनिकों में सांख्य, वैशेषिक और बौद्ध दर्शन ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया। पश्चिमी दार्शनिकों में रीड, हैमिल्टन, बर्टेण्ड रसल आदि दार्शनिक इसके प्रतिपादक हैं। जैन दर्शन ने प्रत्ययवाद और वस्तुवाद-इन दोनों सत्यांशों की सापेक्ष व्याख्या की है। उस व्याख्या का पहला सूत्र प्रत्ययवादी धारणा में संशोधन प्रस्तुत करता है। चेतना से बाहर कुछ नहीं है, इसकी अपेक्षा यह मानना अधिक संगत हो सकता है कि अस्तित्व से बाहर कुछ नहीं है। अस्तित्व को एक इकाई बनाया जा सकता है, किन्तु चेतना को एक इकाई नहीं बनाया जा सकता। अस्तित्व में चेतन और अचेतन—दोनों का समाहार हो सकता है, किन्तु चेतन में अचेतन का समाहार नहीं हो सकता। चेतन और अचेतन यह दो की स्वीकृति प्रत्ययवाद को वस्तुवाद में बदल देती है। अचेतन को चेतना का प्रतिबिम्ब मानने में अनेक जटिलताएं उत्पन्न होती हैं। अस्तित्व की एकता में कोई जटिलता नहीं है । चेतना विभाजक गुण है। वह चेतन को अचेतन से पृथक् करती है । ‘सामान्य' संयोजक गुण है । वह सब द्रव्यों में समानरूप से व्याप्त रहता है । इसलिए वह एकता का अन्तिम बिन्दु है । उस पर पूर्ण अद्वैत का सिद्धांत फलित होता है। अत: प्रत्ययवादी दृष्टिकोण भी सत्यांश है । ___'है' (सत्) परम अस्तित्व है । 'अमुक है'- यह अपर अस्तित्व है । परम अस्तित्व में कोई विभाजन नहीं है, न द्रव्य और न पर्याय। अपर अस्तित्व में विभाजन होता है। उसकी सीमा में द्रव्य है और उसके अनेक प्रकार हैं। पर्याय हैं और वे अनन्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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