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________________ साधना का मार्ग लेना नहीं जानते, तो ऐसा लगता है कि या तो कहने वाले का कोई अहं है या वह दूसरे के अहं पर चोट कर रहा है । श्वास हमारी नैसर्गिक प्रवृत्ति है । बच्चा श्वास लेना शुरू कर देता है । यह स्व-संचालित नाड़ी तंत्र की क्रिया है । इसके लिए प्रशिक्षण लेना आवश्यक नहीं है । हर आदमी श्वास लेता है, फिर वह पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ । साधारणतया हम एक मिनट में पन्द्रह-बीस श्वास लेते हैं। हर आदमी एक दिन-रात में इक्कीस हजार से कुछ अधिक श्वास लेता है। यदि गहरा श्वास लें तो इस संख्या में काफी परिवर्तन आ सकता है। श्वास का प्राणशक्ति के साथ गहरा सम्बन्ध है । जो कम श्वास लेता है उसका जीवन लम्बा होता है । जो अधिक श्वास लेता है उसका जीवन शीघ्र समाप्त हो जाता है। वैज्ञानिक शोधों का निष्कर्ष है कि जो एक मिनट में चार पांच श्वास लेते हैं वे एक सौ पचास या दो सौ वर्ष जीते हैं। जो एक मिनट में दस-बारह श्वास लेते हैं वे सौ या एक सौ पचीस वर्ष जीते हैं। जो एक मिनट में पन्द्रह-सोलह श्वास लेते हैं वे सत्तर या अस्सी वर्ष जीते हैं। श्वास जितना दीर्घ होगा उतना ही प्राणवायु भीतर जायेगा। फेफड़े के रक्त की शुद्धि के लिए उतना ही अधिक ईंधन मिलेगा । यदि एक मिनट में एक या दो श्वास लिया जा सके तो फुफ्फुस यंत्र के सात करोड़ कोषों (Cells) की पूरी सफाई हो जाती है। योग-विद्या ने सर्वप्रथम मनुष्य का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि हमारा श्वास दीर्घ और गहरा होना चाहिये । दीर्घ श्वास से रक्तशुद्धि ही नहीं होती है, मन भी शान्त होता है । जनसाधारण का प्रश्न है कि मन कहीं टिकता नहीं है उसे कैसे टिकाएं ? जैसे ही एक बिन्दु पर मन टिकाने का प्रयत्न करते हैं मन दौड़ने लग जाता है। मन को रोकना निषेध का सिद्धान्त है । जिसका निषेध किया जाता है उसका आकर्षण बढ़ जाता है। आप बच्चे से कहें, तुम्हें बाहर नहीं जाना है तब वह बाहर जरूर जाना चाहेगा । रत्नादेवी ने जिनरक्षित और जिनपाल से कहा- 'मैं कार्यवश बाहर जा रही हूं। अकेले तुम्हारा मन न लगे तो तुम घूमने के लिए बाहर चले जाना । पूर्व में रमणीय उद्यान है । सब ऋतुओं के फूल, सुरभिमय पवन, मोहक वातावरण - सब कुछ उपलब्ध है । वहां सुख से समय बिताना । यदि तुम चाहो तो पश्चिम और उत्तर के उद्यानों में चले जाना। वे भी बहुत रमणीय हैं । किन्तु एक बात का ध्यान रखना । दक्षिण के उद्यान में मत जाना। वहां जाओगे तो संकट में पड़ जाओगे । वह अत्यन्त खतरनाक है ।' देवी चली गई । जिनरक्षित और जिनपाल के मन में पूर्व, पश्चिम और उत्तर के उद्यानों में जाने का कोई आकर्षण नहीं बना। फिर भी वे देवी के निर्देशानुसार 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only ७१ www.jainelibrary.org
SR No.003147
Book TitleSatya ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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