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अद्वैत और द्वैत
के आमने-सामने खड़े हैं। दोनों एक-दूसरे की टकराहट को झेल रहे हैं और एक-दूसरे का निरसन कर रहे हैं ।
जैन दर्शन आत्मा के स्वतन्त्र अस्तित्व को स्वीकार करता है, चेतना की वास्तविकता को स्वीकार करता है। फिर भी अचेतन की अवास्तविकता का प्रतिपादन नहीं करता । वह चेतन को जितना वास्तविक मानता है उतना ही अचेतन को वास्तविक मानता है । इसलिए वह 'जड़ाद्वैतवादी' दर्शन का सीधा विरोधी नहीं है । वह दोनों के मध्य में है । उसकी धारा दोनों की ओर प्रवाहित होती है। चेतन की वास्तविक सत्ता है, इसमें उसकी स्वीकृति है और अचेतन की वास्तविक सत्ता है, इसमें भी उसकी स्वीकृति है । इस उभयपक्षी स्वीकृति के कारण जैन दर्शन द्वैतवादी है - चेतन और अचेतन की वास्तविक सत्ता को स्वीकार करने वाला है ।
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दर्शन की तीन धाराएं विकसित हो गईं— जड़ाद्वैतवाद, आत्माद्वैतवाद और द्वैतवाद । भारतीय दर्शन इन तीन धाराओं में बंटा हुआ है। कुछ आधुनिक विद्वान् मानते हैं कि सांख्य दर्शन बहुत प्राचीन है। जैन दर्शन का विकास उसके आधार पर हुआ हैं। मुझे लगता है यह एकांगी स्वीकार है । इसमें कोई संदेह नहीं कि सांख्य दर्शन बहुत प्राचीन है । किन्तु इस सत्य को भी विस्मृत नहीं करना चाहिए कि जैन दर्शन उससे कम प्राचीन नहीं है। सांख्य दर्शन उसी श्रमण दर्शन की धारा में विकसित हुआ था जिसमें जैन दर्शन विकसित हुआ। दोनों एक ही धारा के दर्शन हैं, इसलिए उनमें समान तत्त्वों की खोज की जा सकती है, किन्तु इससे उनके पौर्वापर्य का अनुमान नहीं किया जा सकता । शंकराचार्य ने लिखा है- 'कपिल का सांख्य दर्शन वेद- विरुद्ध है और महर्षि मनु का जो वेदानुसारी वचन है, उसके भी विरुद्ध है । अर्थात् वह श्रुति और स्मृति — दोनों के विरुद्ध है, इसलिए वह विचारणीय नहीं है ।' पद्मपुराण में एक उल्लेख मिलता है - ' नैयायिक, वैशेषिक और पतंजलि का योग दर्शन - श्रुति विरुद्ध होने के कारण त्याज्य हैं।' मुझे आश्चर्य होता है कि इन तथ्यों पर विद्वानों का ध्यान क्यों नहीं आकर्षित हुआ ? प्राचीनता और अर्वाचीनता के निर्णय में इनका उपयोग क्यों नहीं किया गया ?
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आप पतंजलि के योग दर्शन को देख जाइए। उसमें अनेक शब्द ऐसे हैं जो श्रमण साहित्य में मिलेंगे । वैदिक साहित्य में नहीं खोजे जा सकते । केवली, ज्ञानावरणीय कर्म, सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन, चरमदेह, सोपक्रम, निरूपक्रम, सवितर्क, सविचार, निर्विचार आदि-आदि शब्द श्रमण परम्परा में बहुलता से व्यवहृत हैं । सांख्य और
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