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तस्ववाद
का डर लगता है तो छाता ले जाओ। पर पानी सींचना ही होगा। उसके सामने छाते की उपयोगिता है । वह उसी को समझ रहा है। वर्षा से जो सहज सिंचन हो रहा है, उसे या तो वह समझ नहीं पा रहा है या जान-बूझकर नकार रहा है। मुझे लगता है कि यह एक प्रवाह है कि छाते की बात सुझाई जा रही है और पानी स्वयं सिंचित हो रहा है, उसे स्वीकृत नहीं किया जा रहा है ।
महर्षि कणाद ने वैशेषिक सूत्र भगवान् महावीर के बाद लिखा था । सांख्य दर्शन का विकास भगवान् पार्श्व के बाद और भगवान् महावीर के आस-पास हुआ था । किन्तु तत्त्व के विषय में सांख्य और जैन दर्शन का दृष्टिकोण स्वतन्त्र है । इसलिए तत्त्व के वर्गीकरण में सांख्य दर्शन जैन दर्शन का आभारी है या जैन दर्शन सांख्य दर्शन का आभारी है, यह नहीं कहा जा सकता। सांख्य दर्शन सृष्टिवादी हैं और सृष्टिवादी की कल्पना उसके तात्त्विक वर्गीकरण के साथ जुड़ी हुई है। जैन दर्शन द्रव्य-पर्यायवादी है । उसके वर्गीकरण में कुछ तत्त्व ऐसे हैं जो सांख्य के प्रकृति और पुरुष - इन दोनों से सर्वथा भिन्न हैं ।
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भगवान् महावीर ने पांच अस्तिकाओं का प्रतिपादन किया। राजगृह के बाहर गुणशिलक नाम का चैत्य था । उसकी थोड़ी दूरी पर परिव्राजकों का एक 'आवसथ' था। उसमें कालोदायी आदि अनेक परिव्राजक रहते थे। एक बार भगवान् महावीर राजगृह पधारे, गुणशिलंक में ठहरे। राजगृह में 'मद्दुक' नाम का श्रमणोपासक रहता था। वह भगवान् को वन्दना करने के आ रहा था। परिव्राजकों ने उसे देखा, अपने पास बुलाया और कहा - 'तुम्हारे धर्माचार्य श्रमण महावीर पांच अस्तिकाओं का प्रतिपादन करते हैं । तुम जानते हो, देखते हो ?'
मद्दुक ने कहा- 'जो पदार्थ कार्य करता है, उसे हम जानते हैं, देखते हैं, और जो पदार्थ कार्य नहीं करता, उसे हम नहीं जानते, नहीं देखते।'
परिव्राजक बोले- 'तुम कैसे श्रमणपोसक हुए जो तुम अपने धर्माचार्य के द्वारा प्रतिपादित अस्तिकाओं को नहीं जानते, नहीं देखते ।'
उनका व्यंग्य सुन मद्दुक बोला
'आयुष्मन् ! क्या हवा चल रही है ? '
'हां, चल रही है ।'
'क्या चलती हुई हवा का आप रूप देख रहे हैं ? '
'नहीं ।'
'आयुष्मन् ! हम हवा को नहीं देखते किन्तु हिलते हुए पत्तों को देखकर हम
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