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प्रस्तुति
आरोग्य का प्रश्न जीवन से जुड़ा हुआ प्रश्न है । वह किसी संप्रदाय का प्रश्न नहीं है । भगवान् महावीर के सामने आत्मा प्रधान थी, शरीर गौण था । आत्मा के विकास में सहयोगी बने उस शरीर का मूल्य था । वह शरीर मूल्यहीन था, जो आत्मोदय में बाधक बने । आदि से अंत तक आत्मा की परिक्रमा करने वाली चेतना उसी स्वास्थ्य को मूल्य दे सकती है, जिसके कणकण में आत्मा की सहज स्मृति हो ।
भगवान् महावीर ने स्वास्थ्य के शास्त्र का प्रतिपादन नहीं किया । उनकी वाणी में शरीर आत्मा का सहायक और उपयोगी मात्र है इसलिए शारीरिक स्वास्थ्य का शास्त्र उनकी वाणी का विषय नहीं रहा । उनके सामने परम तत्त्व था आत्मा । उसे स्वस्थ रखने के लिए उन्होंने बहुत कहा और वह अध्यात्म शास्त्र बन गया । अध्यात्म - शास्त्र का दूसरा नाम स्वास्थ्य - शास्त्र है । इस सचाई का प्रतिपादन पढने को मिलेगा 'महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र' में आत्मिक स्वास्थ्य में बाधा डालने वाले तत्त्व हैं- राग, द्वेष, मोह, क्रोध, मान, माया, लोभ, भय, शोक, घृणा, काम-वासना आदि । ये शरीर और मन को भी रुग्ण बनाते हैं । इनकी चिकित्सा स्वास्थ्य का मूल आधार है ।
हमारी दुनिया शब्द-वर्ण, रस, गंध और स्पर्श से संपृक्त है । प्रत्येक पदार्थ वर्ण, रस आदि से संयुक्त है । ध्वनि चिकित्सा, रस चिकित्सा, गंध चिकित्सा स्पर्श चिकित्सा, और रंग चिकित्सा - ये चिकित्सा की प्राचीन पद्धतियां
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