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आरोग्य का प्रश्न जीवन से जुड़ा हुआ प्रश्न वह किसी सम्प्रदाय का प्रश्न नहीं है । न महावीर के सामने आत्मा प्रधान थी, गौण था । आत्मा के विकास में सहयोगी . उस शरीर का मूल्य था । वह शरीर मूल्यहीन तो आत्मोदय में बाधक बने । आदि से अंत अहिंसा की परिक्रमा करने वाली चेतना उसी व्य को मूल्य दे सकती है, जिसके कण-कण त्मा की सहज स्मृति हो । भगवान महावीर
स्थ्य के शास्त्र का प्रतिपादन नहीं किया । गो वाणी में शरीर आत्मा का सहायक और
गी मात्र है, इसलिए शारीरिक स्वास्थ्य का | उनकी वाणी का विषय नहीं रहा । उनके ने परम तत्व था आत्मा । उसे स्वस्थ रखने ए उन्होंने बहुत कहा और वह अध्यात्मशास्त्र गया । अध्यात्मशास्त्र का दूसरा नाम व्यशास्त्र है । इस सचाई का प्रतिपादन पढ़ने मेलेगा ‘महावीर का स्वास्थ्यशास्त्र' में ।
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