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लेश्याध्यान और स्वास्थ्य १२९ अपवित्र है, तो रस में कड़वापन और कसैलापन आ जाएगा । यदि हमारी भावधारा पवित्र है तो मक्खन जैसे कोमल और मृदु स्पर्श का अनुभव होगा। यदि भावधारा अपवित्र है तो कठोर, तीक्ष्ण और खुरदरे स्पर्श का अनुभव होगा । वर्तमान रंग चिकित्सा अथवा रश्मि चिकित्सा पद्धति में केवल रंग को पकड़ा गया है । यदि हम विश्लेषण करें तो आभामंडल में केवल वर्ण ही नहीं, गंध, रस और स्पर्श भी हैं | जहां लेश्या का संबंध है वहां वर्ण, गंध, रस और स्पर्श चारों जुड़े हुए हैं | रंग बदलेगा तो गंध बदल जाएगी, रंग बदलेगा तो रस बदल जाएगा और रंग बदलेगा तो स्पर्श बदल जाएगा ।
इस समग्र सिद्धांत के आधार पर हम आरोग्य अथवा स्वास्थ्य की मीमांसा करें तो सहज निष्कर्ष होगा-लेश्या के सिद्धांत को समझे बिना हम केवल दवाओं के आधार पर स्वास्थ को सुरक्षित नहीं रख सकते ।
लेश्या और भावधारा
लेश्या और भावधारा में अन्तर्व्याति है । लेश्या का अर्थ है भावधारा और भावधारा का अर्थ है लेश्या । जब व्यक्ति बहुत ज्यादा हिंसा में प्रवृत्त होता है तब मान लेना चाहिए-उस व्यक्ति में कृष्ण लेश्या के पुद्गलों का अधिक संचय हो गया है । जिसमें कृष्ण लेश्या के पुद्गल अधिक संचित हैं, वह अजितेन्द्रिय हो जाएगा । अजितेन्द्रियता कृष्ण लेश्या का परिणाम है । जिस व्यक्ति में कृष्ण लेश्या अधिक होती है, उसमें इस प्रकार की भावधारा प्रवाहित होती है । कृष्ण लेश्या को बदलो, हिंसा की वृत्ति बदल जाएगी, हिंसा से घृणा हो जाएगी । कभी कभी ऐसी घटनाएं घटती हैं कि व्यक्ति आश्चर्य से भर जाता है । क्रूर और हिंसक व्यक्ति एक क्षण में ही क्रूरता
और हिंसा की वृत्ति को त्याग देता है । यह कैसे होता है ? इसका कारण है लेश्या का परिर्वतन । लेश्या बदलती है, भाव बदल जाते हैं। किसी निमित्त को पाकर रंग बदलता है और रंग बदलते ही हिंसा की बात मन से निकल जाती है, चोरी की बात मन से निकल जाती है । यह देख कर आश्चर्य होता है—पहले क्षण जो क्रूर हत्यारा था, वह दूसरे क्षण में साधु बन गया । अंगुलिमाल
और अर्जुनमालाकार का जीवन इस सचाई का स्वयम्भू साक्ष्य है । अर्जुनमालाकार प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करता था । छह पुरुष और एक स्त्री प्रतिदिन
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