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१२६ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र से परामर्श किया पर कोई समाधान नहीं मिला । एक दिन एक रंग-वैज्ञानिक आया । उसने गहरा अध्ययन किया और कारण समझ में आ गया । उसने कहा-विद्यार्थी उच्छंखल हो, यह स्वाभविक बात है । इस विद्यालय की दीवारें, कमरे-सब कुछ गहरे लाल रंग से रंगे हुए हैं । खिड़कियों पर लगे हुए पर्दे भी गहरे लाल रंग के है | जहां इतना गहरा लाल रंग है वहां सक्रियता अधिक होगी । जहां अत्यधिक सक्रियता और ऊष्मा है, वहां उदंडता स्वाभाविक है । रंग-वैज्ञानिक ने सुझाव दिया—आप इन लाल पर्दो को हटाइए | कमरे के रंग में परिवर्तन कीजिए | लाल के स्थान पर नीले रंग का प्रयोग करें । अध्यापकों ने इस सुझाव को क्रियान्वित किया, उइंडता की समस्या सामप्त हो गई । सारे विद्यार्थी सहज शान्त बन गए ।
हम इसका विश्लेषण करें- प्रकृति पर, स्वभाव पर रंग का कितना असर होता है | लाल रंग था, सब उदंड बन गए । नीला रंगा आया, सब शान्त हो गए । क्रोध, मान, माया, लोभ- ये सब रंगों के साथ जुड़े हुए हैं इसलिए कोई भी व्यक्ति आरोग्य और रोग पर विचार करे और रंगों पर विचार न करे, लेश्या पर विचार न करे तो शायद वह पूरा स्वस्थ नहीं हो सकता। स्वास्थ्य के लिए यह जानना बहुत जरूरी है कि कौन सा रंग प्रभावित कर रहा है ।
बम्बई की घटना है । एक व्यक्ति बहुत बीमार रहता, निरंतर बुखार से पीड़ित रहता | बहुत उपचार करवाया, ऐलोपैथी, होम्योपैथी सब दवाएं ले ली पर स्वस्थ नहीं हुआ । आखिर कलकत्ता के विख्यात रत्न-रश्मि चिकित्सक को बुलाया । रत्न-चिकित्सक ने पूरे शरीर को देखा, बीमारी का हेतु पकड़ में आ गया । चिकित्सक ने कहा- तुम्हारे हाथ में यह जो अंगूठी है, वही निरंतर ज्वर का हेतु है । तुम इसे हाथ में मत रखो । उसने अंगूठी को तत्काल उतार दिया । चिकित्सक ने कहा- इस अंगूठी में जो रत्न जड़ा है, उसमें बहुत रश्मियां संचित हैं । उन रश्मियों का विकिरण भी प्रभावित कर सकता है इसलिए इस अंगूठी को किसी अन्य कक्ष में रख दो । ज्वर-पीड़ित व्यक्ति ने वैसा ही किया । परिणाम यह आया- जो ज्वर वर्षों से पीड़ित कर रहा था, वह सायं तक नहीं ठहर पाया ।
बीमारी और आरोग्य दोनों के साथ रंगों का गहरा संबंध है । भगवान् महावीर ने लेश्या सिद्धांत का प्रतिपादन किया । उसमे छह रंगों के आधार
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