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कायोत्सर्ग और स्वास्थ्य ११३ होगी । डाक्टर कहते हैं-सामने कोई व्यक्ति खांसता है तो दूसरे व्यक्ति को नाक पर कपड़ा लगा लेना चाहिए । किसी को इन्फेक्शन है तो सामने वाले को नाक पर कपड़ा लगा लेना चाहिए । डाक्टर जब आप्रेशन करता है, नाक पर वस्त्र बांध लेता है । कारण यही है कि बीमारी का संक्रमण न हो | नाक खुला हुआ है तो श्वास के साथ बीमारी के कीटाणु भीतर प्रवेश पा पाएंगे। नाक बन्द कर लो, संवर हो गया । नाक का संवर करना जरूरी है । आश्रव समस्या का मूल है । संवर समस्या का समाधान है | हमारे शरीर में आश्रव बहुत हैं | आश्रवों का दरवाजा खुला हुआ है । शरीर के सारे दरवाजे बंद हो तो मन कुछ नहीं कर सकता । शरीर का योग नहीं मिले तो कुछ नहीं हो सकता । मनोवर्गणा को कौन ग्रहण करता है ? वचनवर्गणा को ग्रहण कौन करता है ? शरीर करता है | अगर शरीर का कायोत्सर्ग हो जाए, शरीर शिथिल हो जाए तो मन का दरवाजा बन्द हो जाए, बीमारियों का द्वार भी बंद हो जाए । यह तात्विक बात हमारे लिए कितनी व्यावहारिक बनती है। जिनभद्रगणी ने बड़ी महत्वपूर्ण बात कही-चंचलता एक ही है और वह शरीर की चंचलता है । काया को ठीक से साध लो तो मन सध जाएगा, वाणी सध जाएगी, और भी बाते सध जाएंगी । कितना महत्वपूर्ण सूत्र है यह । यदि हम इसका ठीक उपयोग करें, काया को साध लें, कायसिद्धि कर लें और स्थिर रहना सीख जाएं तो अनेक समस्याओं से मुक्ति मिल जाए ।
रहस्यपूर्ण प्रयोग
कायोत्सर्ग का एक प्रकार है ऊर्ध्व कायोत्सर्ग-खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना । भगवान् महावीर ने काया के उत्सर्ग के जो प्रकार बतलाए, उनमें एक है ऊर्ध्व कायोत्सर्ग । इससे एक रहस्य प्रकट होता है । ऊर्ध्व कायोत्सर्ग करने से प्राण ऊर्जा संतुलित बन जाती है, कहीं ज्यादा इकट्ठी नहीं हो पाती । ब्रह्मचर्य की सिद्धि का यह रहस्यपूर्ण प्रयोग है । इसका रहस्य यह है कि जिसमें रागात्मक प्रवृत्ति है, वह ज्यादा बैठना नहीं चाहता । जिसमें द्वेषात्मक प्रवृत्ति है, वह ज्यादा चलना नहीं चाहता । यह ऑपन साइंस का नियम है | रागात्मक प्रवृत्ति के लिए गमनयोग का संयम अपेक्षित है । कितना रहस्यपूर्ण सूत्र है यह । यह ऊर्ध्व-स्थान ब्रह्मचर्य की साधना का महत्वपूर्ण सूत्र है । बैठ कर भी कायोत्सर्ग
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