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प्रेक्षाध्यान और स्वास्थ्य ९९ स्मृति है, अतृप्त की भावना है, व्यक्ति मन में उभरी चाह को तृप्त नहीं कर सका । भूख कम हो जाएगी, भूख ही नहीं लगेगी क्योंकि चिन्ता युक्त स्मृति है | किसी विषय में तीव्र भावना पैदा हो गई कि उसे पूरा करना ही है तो बीमारी पैदा हो जाएगी। इस प्रकार भाव और बीमारियों का आज के वैज्ञानिकों ने परीक्षण के द्वारा बहुत अध्ययन किया है । इस विषय पर एक पुस्तक जापान में निकली है, जिसमें यह बताया गया है...- किस प्रकार के भाव से कौन-सी बीमारी पैदा होती है ।
दर्शन की श्रृंखला
___ भगवान् महावीर ने एक सूत्र दिया था दर्शन का । एक पूरी श्रृंखला है-जो व्यक्ति क्रोध को देखता है, वह अपने अहंकार को देखता है | जो अपने अहंकार को देखता है, वह अपने द्वारा होने वाले मायाजाल को देखता है । जो अपने मायाजाल को देखता है, वह अपने लोभ को देखता है । जो अपने लोभ को देखता है, वह अपने प्रेयस को देखता है, अनुराग को देखता है, राग को देखता है । जो अपने राग को देखता है, वह अपने द्वेष को देखता है । क्रोध से लेकर जन्म-मरण तक की पूरी श्रृंखला है । कहा गयाक्रोध को भी देखो, हर वृत्ति को देखो । देखोगे तो वृत्ति कमजोर हो जाएगी। न देखोगे तो बढ़ती चली जाएगी। मालिक जागता है, देखता है तो चोर घर में नहीं घुसेगा और मालिक सो रहा है तो चोर के लिए घुसने की बड़ी सुविधा हो जाएगी। हम देखना सीखें, देखें-कहां क्या हो रहा है । यह देखने की जो कला है, उससे प्राण-संतुलन होता है । जिस अवयव को देखोगे, प्राण संतुलित हो जाएगा । रोग का प्रमुख कारण बनता है.- प्राण का असंतुलन । प्राण संतुलित हुआ और बीमारी मिट जाएगी । प्राण-संतुलन का एक साधन है दर्शन, अपने पीड़ित अवयव को देखना । जब हम देखना शुरू करते हैं, प्राण का संतुलन होता है, अच्छे रसायन पैदा होते हैं, एकाग्रता बढ़ती है । ये सब मिलकर स्वास्थ्य को पल्लवित कर देते हैं ।
स्वास्थ्य के स्थूल लक्षण ये हैं-- अच्छी नींद, अच्छी भूख, अच्छा मन, अच्छा चिन्तन और अच्छा भाव । जिसमें ये हैं, वह आदमी स्वस्थ है । जिसको नींद नहीं आती, भूख अच्छी नहीं लगती, चिन्तन अच्छा नहीं रहता, भावनाएं
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