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बनेगा पवित्र जीवन, गात्र बदलेगा चिन्तन का कोण, विकसित होगा नव दृष्टिकोण सुझाएगा औषध का विकल्प ध्यान-योग का संकल्प प्रेक्षा-अनुप्रेक्षा का उपक्रम देगा जीवन को नव्य अभिक्रम नया आश्वास नया विश्वास नया उच्छवास शरीर और मन की सीमा से परे स्वास्थ्य की चेतना का दर्शन कर पाएगा जीवन में नए क्षितिज का उद्घाटन ।
मुनि धनंजय कुमार
४ जून १९९७ तेरापंथ भवन गंगाशहर
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