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९४ महावीर का स्वास्थ्य-शास्त्र
प्रत्येक आसन के साथ अध्यात्म और स्वास्थ्य का सम्बन्ध जुड़ा हुआ है । एक आसन है लगण्डशयन । प्राकृत भाषा का शब्द है लगण्डशयन | इसकी दो प्रक्रियाएं होती हैं । एक प्रक्रिया यह है- सिर जमीन पर लगा रहे, पैर जमीन पर लगे रहें और पूरा शरीर जमीन से ऊपर रहे | केवल एडी और सिर भूमि पर तथा सारा शरीर भूमि से ऊपर रहता है । दूसरी प्रक्रिया यह है-केवल पीठ का भाग भूमि को छुए, पैर और सिर का भाग ऊपर रहे | इसे नौकासन या शलभासन कहा जाता है । पेट और पीठ की बीमारियों को शान्त करने का यह महत्वपूर्ण आसन है ।
आसन : अध्ययन का आधार
स्थानांग, बृहत्कल्पभाष्य, उत्तराध्ययन, मूलाराधना, योगशास्त्र आदि में इस प्रकार के बहुत सारे आसनों का विस्तृत विवरण मिलता है । हम किसी भी मुद्रा में बैठे, वह आसन बन जाएगा । यह माना जाता है- चौरासी लाख आसन हैं। उनका संक्षेप किया गया तो चौरासी आसन हो गए । इनका जो अध्ययन किया गया, वह प्रायः पशु-पक्षियों के अध्ययन के आधार पर किया गया । एक आसन है मयूरासन | मयूर कैसे बैठता है ? मयूर की जो बैठने की विधि है, उसके अध्ययन के आधार पर यह अनुभव किया- मयूर की पाचनशक्ति बहुत तीव्र होती है । वह कुछ भी खा लेता है तो उसको पचा लेता है। पाचनतंत्र को ठीक रखने के लिए मयूरासन का विधान किया गया । कोई मयूरासन करता है तो बली मुद्रा बन जाती है । एक आसन है मत्स्यासन । मछली का यह सहज स्वभाव है कि वह पानी पर बैठ सकती है, कभी डूबती नहीं । यह माना जाता है- जो लोग तैरना सीखते हैं, वे मत्स्यासन की मुद्रा में चले जाएं तो जल में डूबेंगे नहीं । यह प्रतिरोधी आसन भी है। सर्वांगासन किया जाए तो उसके बाद मत्स्यासन अवश्य करना चाहिए ।
विकास करें आसनों का
प्राचीन काल में आसनों का दीर्घकाल तक अध्ययन होता रहा । अनेक स्थितियों का अध्ययन करने के बाद आसनों का विकास हुआ है | आज यह कार्य ठप्प जैसा हो गया है । आज हम जानते हैं- आसन चौरासी प्रकार के हैं अथवा इतने आसन हैं किन्तु ऐसा प्रयत्न नहीं है कि इनका विकास
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