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आधुनिक मानसिकता, अगुव्रत और जीवन-मूल्य
१८९.
अनास्था आने वाली कई पीढ़ियों में संभ्रांत हो जाती है । इसी प्रकार आस्था का भी संक्रमण होता है । मेरा यह निश्चित विश्वास है कि जिस दिन चरित्र की आस्था संक्रमणशील हो जाएगी, चरित्रहीनता और मूल्यहीनता की खोखली दीवारें भरभरा कर गिर पड़ेंगी।" आज हमें संभलकर आगा-पीछा देखकर चलने की जरूरत है। आज का आदमी पानी की चट्टान पर बैठा है, उसके डूबने की संभावना सन्निकट है । उसे हमें पानी की इस चट्टान से उठाना होगा, एक ठोस पत्थर की चट्टान पर बिठाना होगा । उसकी मानसिकता को भी बदलने की बड़ी जरूरत हैं, वरना वह कोई गलत कदम उठाकर मानवजाति के विनाश का कारण भी बन सकता है, उसके किए की सजा फिर न जाने कब तक भोगनी पड़ेगी ।
वह जब भी देखा है तारीख की नजरों ने । लम्हे ने रखता की थी, सदियों ने सजा पाई ॥
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