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भारतीय विद्या के मूलतत्व हैं अहिंसा, अनुशासन, संयम, विनय। इनके पल्लवन से अध्यात्म का मार्ग प्रशस्त होता है। विनय और अनुशासन से साम्प्रदायिक सहिष्णुता के भाव भी संपुष्ट होते हैं, जिनसे लोकतांत्रिक मूल्यों को प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। अहिंसा-भाव सकल प्राणियों के लिए कल्याणकारी है--'सव्वयभूय खेमंकरी'। मानवीय मूल्यों को संरक्षण तभी प्राप्त होगा जब हमारा जीवन अहिंसामय, संयममय हो। आध्यात्मिक विभा भी यहीं से फूटेगी। आज वैज्ञानिक संपदा और उपलब्धि के साथ जीवन में आध्यात्मिक मूल्यों के समुन्नयन की अपेक्षा है। यदि विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय हो, तो अहिंसक समाज की संरचना की जा सकती है, हिंसा, द्वेष, अहंकार, वैर भरे वातावरण को साम्प्रदायिक सौहार्द में परिवर्तित किया जा सकता है। ...
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