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________________ दो शब्द स्व. आनन्द कुमार स्वामी ने जीवनभर विश्वमान की आध्यात्मिक अनुभूतियों के बीच तालमेल बैठाने की नहीं, देखने की कोशिश की। वस्तुतः अध्यात्म पदार्थ का भीतरी स्वभाव है जैसे जल का स्वभाव है नीचे की ओर ढलना, फैलना, आग का स्वभाव हैं ऊपर की ओर जाना। नीचे जाना ऊपर जाना अपने आप में कुछ महत्त्व नहीं रखते। महत्त्व उनका एक दूसरे के स्वभाव का पूरक होने में है । दुःख की बात यह है कि इधर प्रवृत्ति अलगाव की है, आध्यात्मिक अनुभव के स्तर पर भी अलगाव की है । यह सुखद आश्चर्य होता है कि डॉ० निजामुद्दीन ने 'अध्यात्म के परिपार्श्व में' नामक पुस्तक में इस्लामी साधना को वैष्णव और जैन साधनाओं से जोड़ने की कोशिश की है । जब व्यक्ति पूरी सृष्टि के कर्ता से या पूरी सृष्टि के लिए चिन्ता करने वाले के साथ जुड़ता है तो वह दायरे में रहता हुआ भी दायरे से ऊपर उठ जाता है । इसी अतिक्रमण की बात प्रो० निजामुद्दीन ने की है और वह बड़े परितोष का विषय है। आज तुलनात्मक अध्ययन की बहुत बड़ी उपयोगिता है, क्योंकि अलगअलग प्रस्थान बिन्दुओं से मनुष्य चल कर किसी अयव , अप्रमेय की ओर बढ़ता है, रास्ते अलग है भी रास्ते पर जिस मनोयोग से निष्ठा से संयम से चलते हैं, वह चलना लगभग एक-सा होता है। उसी को समझाने की कोशिश इस ग्रन्थ में की गयी है। इससे निश्चय ही इस्लाम की बुनियादी बातों को समझने में मदद मिलेगी। ऐसी समझ जितनी होगी, उतने ही हम एक दूसरे के प्रति केवल सहिष्णु नहीं होगे, हम मन से बहुत उदार भी होंगे। हमें सब जगह एक-सी बेचैनी दिखायी पड़ेगी सृष्टि के रहस्य को समझने की, सृष्टि के रहस्य को समझने का प्रयत्न आदमी को ऊपर उठाता है उसके देशकाल से । मैं डॉ० निजामुद्दीन का इस सुन्दर और सामयिक रचना के लिए साधुवाद देता हूं। विद्यानिवास मिश्र ईद, २५-३-९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003145
Book TitleAdhyatma ke Pariparshwa me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNizamuddin
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1993
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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