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६. प्राकृतिक आपदाओं का एक कारण
मनुष्य ने प्रकृति-विजेता बनने का सपना देखा। उसने अपने स्वप्न को साकार करने के लिए पुरुषार्थ किया। आज वह दंभ भरता है कि उसने प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली है। उसका दावा है कि वह आकाश की बुलंदियों को छू सकता है और पाताल में पैठ सकता है। वह गर्म हवाओं को बर्फ-सी ठंडी बना सकता है और हिमानी रातों में ऊष्मा भर सकता है। वह विश्व के किसी भी भाग में रहने वाले लोगों से सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है, उन्हें देख सकता है, उनके साथ बात कर सकता है और न जाने क्या-क्या कर सकता है। दूरदर्शन और दूरभाष की बात तो बहुत साधारण है,दूर चिकित्सा की विधियां भी विकसित हो रही हैं।
मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि बहुत कुछ होने पर भी कुछ भी नहीं हुआ है। प्रकृति का अपना साम्राज्य है। उस पर किसी का वश नहीं चलता। वह बार-बार मनुष्य के अहं को तोड़ रही है। कभी अतिवृष्टि, कभी अनावृष्टि । कभी बाढ़, कभी भू-स्खलन । कभी आंधी, कभी तूफान । प्रकृति के ये भयावह हादसे ! मनुष्य हाथ में हाथ बांधे निरीह होकर खड़ा है। वह इतना असहाय हो रहा है कि कुछ भी कर नहीं पाता।
महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में प्रकृति ने जो कहर ढहाया है, सुन-पढ़कर रोमांच हो जाता है। प्रकृति की लीला विचित्र है। पता नहीं, कब कहां क्या घटित हो जाए? कब कहां ज्वालामुखी सुलग जाए और उसका लावा बहता हुआ धरती के नीचे उथल-पुथल मचाने लगे। अतीत ऐसे हादसों का साक्षी रहा है, वर्तमान इन्हें भोग रहा है और भविष्य उनकी भयावहता से कांप रहा है। भविष्य में जिस प्रलय की संभावना है, उसका चित्र जैन आगमों में है। किन्तु वह समय काफी दूर है। अठारह हजार वर्ष से भी कुछ अधिक समय
प्राकृतिक आपदाओं का एक कारण : १६
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