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शाब्दिक बनकर रह जाएगी। आश्चर्य तो इस बात का है कि राष्ट्रीय एकता के प्रश्न पर भी पार्टी पॉलिटिक्स सामने आ रही है। पर यह प्रश्न न तो राजनीति का है और न धर्मनीति का है। सभी नीतियों के लोग एक साथ बैठें, व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर चिंतन करें ओर उसकी क्रियान्विति में विलंब न करें तो ही कोई परिणाम आ सकता है।
जिज्ञासा-पंजाब, कश्मीर और असम के मुद्दों पर राष्ट्रीय एकता परिषद की कोई बैठक नहीं हुई, पर राम मन्दिर और बाबरी मस्जिद विवाद पर उसकी बैठक आयोजित की गई। क्या वही देश की सबसे महत्त्वपूर्ण समस्या
समाधान-समस्याएं सभी महत्त्वपूर्ण होती हैं। पर कोई तात्कालिक समस्या उभरकर सामने आ जाए तो उस पर तत्काल चिंतन करना अनिवार्य हो जाता है। अन्यथा उसकी जड़ें और गहरी हो जाती हैं। समय पर चिंतन हुआ, बढ़ता विप्लव विराम पा गया। किसी एक समस्या के बारे में सोचा जाता है, इसका अर्थ यह नहीं होता कि वही सबसे महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक समस्या चिंतन मांगती है। द्रव्य, क्षेत्र, समय और परिस्थिति के अनुरूप उस पर चिंतन होना ही चाहिए।
जिज्ञासा-आने वाला कल हमारे देश के लिए और पृथ्वी के लिए कैसा होगा?
समाधान-हम भविष्यवक्ता नहीं हैं। भविष्यवाणियों में हमारा विश्वास भी नहीं है। फिर भी हम इतना कह सकते हैं कि 'नीति के पीछे बरकत होती है' यह कहावत असत्य नहीं है। मनुष्य का लक्ष्य सही हो, लक्ष्य प्राप्ति के साधन सही हों, उन साधनों के प्रति गहरी निष्ठा हो और हो प्रगाढ़ पुरुषार्थ । भारत हो या विश्व का कोई भी अन्य देश, यदि उसमें इस चतुष्टयी की सम्यक् आराधना हो तो भविष्य के लिए उसे चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। यदि उसकी सम्यक् आराधना नहीं होती है तो चिंतित होने मात्र से कोई निष्पत्ति आने वाली नहीं है।
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१६० : दीये से दीया जले
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