SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सारज प्रकाश का पुंज है। वह अन्धकार को दूर कर चमकता है। पर उसकी अपनी सीमाएं हैं। वह सीमित समय तक चमकता है। समय की सीमा. पूर्ण होते ही वह अस्ताचल की ओट में चला जाता है और धरती पर पुनः अन्धकार का साम्राज्य छा जाता है। अस्ताचल की ओर जाते समय सूर्य एक प्रश्न चिह्न छोड़ता है और अपनी अनुपस्थिति में किसी सबल व्यक्ति को प्रकाश फैलाने का दायित्व देना चाहता है किन्तु चारों ओर एक सपाट मौन फैल जाता है। कोई भी इतना साहस नहीं जुटा पाता है। उस समय नन्हा-सा दीपक खड़ा होकर आत्मविश्वास के साथ कहता हैआप निश्चिन्त होकर जाइए। मैं रात भर जागृत रहूंगा। अपने सामर्थ्य के अनुसार अन्धकार से लडूंगा और संसार में प्रकाश के अस्तित्व को बचाकर रखूगा। इस आस्था को प्रज्वलित रखने वाला दीपक आज कहां है? मनुष्य सोचता है कि इस युग में नीति और चरित्र के बल पर जीवन जीना दुष्कर है। उसके विश्वास की जड़ें हिल गई हैं। ऐसे समय में अणुव्रत अनुशास्ता गुरुदेव श्री तुलसी ने विश्वास का दीया जलाने का वज्र संकल्प अभिव्यक्त किया। दीये से दीया जले-उनके संकल्पों के हिमालय से प्रवाहित ऐसी चिन्तन धारा है, जो युग की ऊष्मा से संतप्त मानव मन को शीतलता प्रदान कर सकती है। Jain Education Interational www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy