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जाता है। कुछ व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए अभावग्रस्त व्यक्तियों का दुरुपयोग करते हैं और उन्हें हिंसा की आग में धकेल देते हैं।
जिज्ञासा-श्रमिक अपने कर्त्तव्य के प्रति जागरूक कैसे रहे? इसके लिए आपका क्या निर्देश है?
समाधान-वृत्तियां तीन प्रकार की होती हैं-सात्विक, राजसिक और तामसिक। इनका सम्बन्ध सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से है। इनकी उत्पत्ति भोजन, वातावरण और स्वभाव-इन सब पर निर्भर करती है। जिस व्यक्ति को उत्तेजित खाद्य पदार्थ और उत्तेजक वातावरण उपलब्ध होता है, उसके स्वभाव में मादकता आती है, उग्रता आती है और वह अपनी कोमलता खो देता है। श्रमिक-वर्ग मद्यपान और धूम्रपान जैसी गलत आदतों का निर्माण कर अपनी वृत्तियों में तामसिकता आने का द्वार खोलता है।
आज एक धारणा संक्रान्त हो रही है कि श्रमिक-वर्ग को मनोरंजन के लिए या चिन्ताओं से मुक्त रहने कि लिए मादक द्रव्यों का सेवन करना चाहिए। यह धारणा कल्याणकर नहीं है। जो व्यक्ति ऐसा तर्क प्रस्तुत करते हैं या इसके आधार पर मादक पदार्थों का सेवन करते हैं, वे श्रमिक-वर्ग का हित नहीं करते। मनोरंजन के साधनों की अपेक्षा हर व्यक्ति को हो सकती है। चिन्ता-मुक्ति के लिए प्रयत्न करना भी आवश्यक है। किन्तु वे प्रत्यन्न ऐसे हों जिनका आर्थिक और चारित्रिक दृष्टि से दुष्प्रभाव न हो।
सरस, सुन्दर और ललित वस्तु के दर्शन, उपयोग आदि से कार्यजा क्षमता बढ़ती है। नीरस वातावरण में क्षमता क्षीण होती है। यह एक मनोवैज्ञानिक सिद्धांत है। हम इस सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं, पर हम इस बात को भी मानते हैं कि सरसता, सौन्दर्य और लालित्य वहीं हो सकते हैं, जहां असरसता, असौन्दर्य और कठोरता निष्पन्न न हो। मादक पदार्थों के सेवन से होने वाली क्षणिक सुखानुभूति या विश्रामानुभूति परिणामकाल में जीवन को ऊबड़-खाबड़ बना देती है, इसलिए उसकी उपयोगिता को स्वीकार नहीं किया जा सकता। मादक पदार्थ जीवन के लिए अहितकर हैं। भारतीय परंपरा में मनोरंजन और चित्त की प्रसन्नता या निश्चिन्तता के जो सात्विक साधन थे, उन्हें भुला दिया गया। सात्विकता की विस्मृति ने तामसिक साधनों को महत्त्व देने की मनोवृत्ति का निर्माण किया और वृत्तियों में तामसिकता
जिज्ञासा : समाधान : १५७
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