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________________ 'मुश्किल एक ही है कि प्रतिस्पर्धाओं के इस युग में आदमी पीछे रहना नहीं चाहता या रह नहीं सकता। फिर भी कहीं-न-कहीं तो ब्रेक लगाना ही होगा। मनुष्य अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं को सन्तुलित नहीं करेगा तो शान्ति से जी नहीं सकेगा। जिज्ञासा-दैनिक पत्रों के मुख पृष्ठ अपहरण, हत्या, आगजनी, दुर्घटना आदि संवादों से पटे रहते हैं। व्यक्ति के भावनात्मक स्वास्थ्य का योगक्षेम करने के लिए क्या इस शैली में बदलाव जरूरी नहीं है? ____ समाधान-भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए और भी अनेक बातें आवश्यक हैं, पर उनकी ओर ध्यान कौन देता है? मानव के ही नहीं, मानवीय संस्कृति के योगक्षेम का दायित्व भी 'मीडिया' पर है। किन्तु लगता है कि इस विषय में कोई नीति निर्धारित नहीं है। समाचार पत्र हो, रेडियो हो या दूरदर्शन हो, इनसे सम्बन्धित व्यक्ति गम्भीर चिन्तन के साथ राष्ट्र-निर्माण-मूलक संवादों को प्राथमिकता दे तो यह समस्या सुलझ सकती है। मीडिया का काम है पाठक, श्रोता या दर्शक को वस्तुस्थिति का ज्ञान कराना। पर पत्रकार क्या करेंगे, जब पाठक अपहरण, हत्या, दुर्घटना आदि संवादों में ही रस लेते हों। पाठकों की रुचि परिष्कृत हो, वे जीवन-मूल्यों से सम्बन्धित संवादों में विशेष रुचि लें तो पत्रकारों को अपनी शैली बदलनी ही पड़ेगी। अन्यथा जो प्रवाह चल रहा है, वह इतना तीव्रगामी है कि छोटे प्रयास से उसमें बदलाव की संभावना नहीं की जा सकती। जिज्ञासा-श्रमिक-वर्ग हिंसात्मक उपद्रवों और तोड़फोड़मूलक प्रवृत्तियों में भाग लेता है, इसके पीछे कौन-सी प्रेरणा काम करती है? समाधान-वर्तमान औद्योगिक युग में श्रमिक-वर्ग बहुत बड़ा वर्ग है। वह वर्ग दूसरे वर्गों की अपेक्षा अधिक सक्षम और स्वावलम्बी है। उसके स्वावलम्बन का आधार है उसका अपना पुरुषार्थ । जो व्यक्ति पुरुषार्थ नहीं करते, वे प्रमाद और हीनभावना से आक्रान्त रहते हैं। धनिक वर्ग प्रमादी होता है तथा भिखारी हीनता का अनुभव करते हैं। श्रमिक स्वावलम्बी होते हैं, अतः वे उक्त दोनों प्रकार की बुराइयों से मुक्त रहते हैं। सामाजिक जीवन-पद्धति में यह पद्धति सबसे अधिक निर्दोष हो सकती है। फिर भी समाज एक संक्रमणशील संस्था है। उसमें ऐसी लोह दीवार नहीं है, जिससे जिज्ञासा : समाधान : १५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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