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अस्तित्व में आया। शस्त्रशक्ति और आतंकवाद के सघन प्रशिक्षण से एक वर्ग में क्रूरता पनपी। उस क्रूरता की एक अभिव्यक्ति है अपहरण। किसी राजनयिक या महत्त्वपूर्ण व्यक्ति का अपहरण कर उसकी फिरौती में अनेक आतंकवादियों की रिहाई और सम्पन्न व्यक्ति की फिरौती में लाखों रुपये वसूलने का मनोभाव अपहरण की मूलभूत प्रेरणा है।
आतंकवाद या अपहरण-नीति की पृष्ठभूमि में कई कारण हो सकते हैं। उनमें एक कारण है आर्थिक विषमता। कहीं-कहीं वैषम्य इतना अधिक है कि एक ही स्थान पर स्वर्ग और नरक दोनों को देखा जा सकता है। एक व्यक्ति के पास अट्टालिकाएं हैं, दूसरे व्यक्ति के सिर पर छत भी नहीं है। वह अपनी जिन्दगी फुटपाथ पर बिताता है। एक ओर भोजन पचाने के लिए गोली खानी पड़ती है, दूसरी ओर पेट पालने के लिए पूरा भोजन नहीं मिलता। एक ओर दिन में चार बार ड्रेस का परिवर्तन होता है तथा तीन सौ साठ दिनों के लिए दिनों की संख्या से भी अधिक ड्रेसेज होती हैं। दूसरी
ओर तन ढकने के लिए पूरा वस्त्र नहीं मिलता। यह विषमता विद्रोह को जन्म देती है।
विद्रोही व्यक्ति क्रूर बन जाता है। क्रूरता सीमा को पार कर जाती है तो व्यक्ति कुछ भी कर सकता है। प्राचीन काल में राहजनी और हत्या जैसे अपराध होते थे। इस दिशा में मनुष्य नए-नए रास्ते खोजता जा रहा है। अपहरण में खतरे कम हैं और लाभ अधिक हैं। लोगों की दृष्टि में यह एक सीधा-सरल व्यवसाय हो गया है। एक-दो बार की सफलता व्यक्ति का हौसला बढ़ा देती है। इस संस्कृति ने मनुष्य की निश्चिन्तता और निर्भयता समाप्त कर दी।
कोई भी बीमारी बढ़ जाती है, उग्र रूप धारण कर लेती है तो उसे मिटाने में जोर पड़ता है। समय, श्रम और अर्थ लगाने पर भी बीमारी मिटे या नहीं, कोई गांरटी नहीं देता। अपहरण की संस्कृति भी एक ऐसी ही असाध्य बीमारी का रूप लेती जा रही है। बीमारी मिटे या नहीं, प्रयत्न करना जरूरी है। जैन दर्शन में अवसर्पिणी काल का वर्णन मिलता है। उसके अनुसार श्रेष्ठताओं का उत्तरोत्तर ह्रास होता जाता है। वह हमें प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा है। इस स्थिति में मनुष्य सादगी, श्रम और संयम का पाठ पढ़े।
१५२ : दीये से दीया जले
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