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________________ पारिवारिक और वैयक्तिक शान्ति के लिए खतरा है। इसलिए अणुव्रत ने सहिष्णुता का व्रत प्रस्तुत किया । धर्म-सम्प्रदायों में इस व्रत का व्यापक प्रयोग हो, यह वर्तमान की सबसे बड़ी अपेक्षा है । जिज्ञासा - हिंसात्मक परिस्थिति का अहिंसात्मक प्रतिकार करने के लिए व्यक्ति में किन विशेषताओं का होना अपेक्षित है ? समाधान- अहिंसात्मक प्रतिकार के लिए व्यक्ति में सबसे पहले असाधारण साहस होना नितांत अपेक्षित है । साधारण साहस हिंसा की आग देखकर कांप उठता है। जहां मन में कंपन होता है, वहां स्थिति का समाधान हिंसा में दिखायी पड़ता है । दर्शन का यह मिथ्यात्व व्यक्ति को हिंसा की प्रेरणा देता है । हिंसा और प्रतिहिंसा की यह परम्परा बराबर चलती रहती है। इस परम्परा का अंत करने के लिए व्यक्ति को सहिष्णु बनना जरूरी है । सहिष्णुता के अभाव में मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है । मन संतुलित न हो तो अहिंसात्मक प्रतिकार की बात समझ में नहीं आती, इसलिए वैचारिक सहिष्णुता की बहुत अपेक्षा रहती है । कुछ व्यक्ति विरोधी विचारों को सह सकते हैं, किन्तु उनमें कष्टट-सहिष्णुता नहीं होती। थोड़ी-सी शारीरिक यातना से घबराकर वे अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं । यातना की संभावना मात्र से वे विचलित हो जाते हैं, हिंसात्मक परिस्थिति के सामने घुटने टेक देते हैं । जो व्यक्ति कष्ट - सहिष्णु होते हैं, वे विषम स्थिति में भी अन्याय और असत्य के सामने झुकने की बात नहीं करते। ऐसे व्यक्ति अहिंसात्मक प्रतिकार में अधिक सफल होते हैं। उनकी कष्ट-सहिष्णुता इतनी बढ़ जाती है कि वे मृत्यु तक का वरण करने के लिए सदा उद्यत रहते हैं। जिन व्यक्तियों को मृत्यु का भय नहीं होता, वे सत्य की सुरक्षा के लिए सब कुछ कर सकते हैं । प्रतिरोधात्मक अहिंसा का प्रयोग इन्हीं व्यक्तियों द्वारा किया गया है। जिज्ञासा - तोड़फोड़मूलक विध्वंसक प्रवृत्तियों से समाज को बचाने के लिए हिंसक व्यक्तियों की मांग स्वीकार कर लेनी चाहिए अथवा उनके साथ संघर्ष करते रहना चाहिए? समाधान- व्यक्ति तोड़फोड़मूलक प्रवृत्तियों का सहारा लेता है अपनी दुर्बलता छिपाने के लिए। पर उससे उसकी दुर्बलता को अभिव्यक्ति मिलती १५० : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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