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६१. त्रैकालिक समाधान
मुनष्य में दो प्रकार की वृत्तियां होती हैं-- सिंहवृत्ति और श्वावृत्ति । सिंह पर तीर या गोली का वार होता है तो वह पीछे मुड़कर देखता है। उसमें जिज्ञासा जागती है कि प्रहार किस दिशा से हुआ? किसने किया ? इससे आगे वह प्रहार करने वाले के प्रति आक्रामक रुख अपनाता है और उसे समाप्त कर अपने भविष्य को निरापद बना लेना चाहता है। कुत्ते पर कोई पत्थर फेंकता है तो। वह रुकता है। पर पीछे मुड़कर नहीं देखता। प्रहार करने वाले पर उसका ध्यान नहीं जाता। वह उस पत्थर को चाटने लगता है।
श्वावृत्ति के लोग किसी भी विषय पर चिन्तन करते हैं, उसमें तात्कालिक समाधान का लक्ष्य रहता है। समस्या का तात्कालिक समाधान भी काम का है। पर उससे समस्या का अंत नहीं होता। वह पैंतरा बदलकर दूसरे रूप में सामने आ जाती है। कुछ लोग किसी समस्या के बारे में तब तक नहीं सोचते, जब तक उससे वे स्वयं प्रभावित नहीं हो जाते। यह भी संकीर्ण चिन्तन की प्रेरणा है। उस समस्या को सार्वभौम और सार्वजनीन रूप में देखा जाता है तो किसी भी देश का कोई भी व्यक्ति उससे आंखमिचौनी नहीं कर सकता।
राष्ट्रपति बुडरो विल्सन ने सन्. १६१६ में 'लीग ऑफ नेशन्स' का घोषणापत्र तैयार किया। उसमें लिखा गया है--'कोई भी युद्ध या युद्ध का खतरा, चाहे उससे लीग का कोई सदस्य तत्काल प्रभावित हो या नहीं, समस्त लीग के लिए चिन्ता का विषय है।' यह चिंतन सिंहवृत्ति का प्रतीक है। इसमें समस्या के त्रैकालिक स्वरूप को ध्यान में रखकर विचार किया गया है। आवश्यकता इस वृत्ति को विकसित करने की है। अन्यथा मनुष्य की शक्ति तात्कालिक समस्याओं के समाधान में उलझकर रह जाएगी। उससे न तो स्थायी समाधान मिल पाएगा और न भविष्य के खतरों को टाला जा सकेगा।
१३४ : दीये से दीया जले
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