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का विवेक खो देता है । अयोध्या में विवादित ढांचे को लेकर जो कुछ हुआ,
क्या वह प्रतिक्रिया नहीं है? उससे किसे लाभ मिल रहा है? माना कि किसी विधर्मी ने आपकी धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाया, आपकी सांस्कृतिक विरासत को हथियाने का प्रयास किया । पर इसमें भूल किसकी रही? आपने अपने आपको दुर्बल क्यों होने दिया ? आपकी सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना सुषुप्त क्यों रही? भूल अपनी और दोषारोपण दूसरों पर, यह भी प्रतिक्रियावादी मनोवृत्ति है । इस वृत्ति को बदले बिना कोई भी समाज या राष्ट्र शक्तिसंपन्न नहीं बन सकता ।
विचारभेद रुचिभेद और आस्थाभेद के कारण किसी भी व्यक्ति या राष्ट्र के बारे में विवाद की संभावना को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । विवाद को सुलझाने के भी उपाय हैं । समन्वय, समझौता आदि उपायों को काम में लिया जाए तो किसी भी विवाद को टिकने के लिए जमीन नहीं मिल सकती । किन्तु जहां विवादग्रस्त विषय में आग्रह का सहारा लिया जाता है, वहां आक्रोश, ध्वंस और हत्याओं का अन्तहीन सिलसिला शुरू हो जाता है। एक भूल के साथ अनेक भूलों का इतिहास जुड़ता है। इससे वर्तमान के भाल पर कलंक का जो टीका लगता है, उसे अनागत के अनेक प्रयत्न भी पोंछ नहीं सकते। जब तक उस ध्वंस के अवशेष रहेंगे, लोग कहेंगे-अमुक लोगों ने ध्वंस का इतिहास बनाया । अतीत में किसी के द्वारा भी ऐसा अवांछनीय प्रयत्न हुआ, शिष्ट, शालीन एवं चिन्तनशील व्यक्तियों द्वारा उसे मान्यता कब मिली? ऐसी घटना के बारे में विज्ञ लोगों की राय कभी सकारात्मक नहीं होती । फिर भी किसी ने कोई भूल कर दी तो गड़े मुर्दे उखाड़ने से किसको लाभ होगा ?
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भगवान् महावीर, बुद्ध, मुहम्मद साहब, गुरुनानक आदि कितने महापुरुष हो गए। उन्होंने अपने अनुयायियों को शान्ति और सहिष्णुता का बोधपाठ दिया। क्या वे कहानियां वाग्विलास मात्र बनकर रह गई हैं ? आज एक विवादित ढांचे को ध्वस्त करने की प्रतिक्रियास्वरूप पूरे विश्व में मंदिर तोड़े जा रहे हैं। क्या इस तोड़फोड़ का कोई औचित्य है ? हिन्दुस्तान में जो घटना घटी, उसकी प्रतिक्रिया पाकिस्तान और बंगला देश में क्यों हुई ? पाकिस्तान या बंगला देश में जो हुआ, उसका अनुकरण भारत में रहने वाले मुसलमानों
११६ : दीये से दीया जले
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