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पर एक ब्रेक लग गया । भावनाओं के उफान पर सद्भाव के छींटे डाले गए। कार सेवा रुक गई या स्थानान्तरित हो गई। एक विस्फोट होते-होते
रुक गया ।
ध्यान से देखा जाए तो ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो संघर्ष में रस ते हैं । वे देश को आमने-सामने खड़ा करने पर तुले हुए हैं । ऐसी स्थिति में नेतृत्व की परीक्षा होती है । नेतृत्व करने वालों का दिमाग शान्त और संतुलित होता है, तो वे स्थिति को हाथ से निकलने नहीं देते । भारतीय संस्कृति दमन और रक्तपात की संस्कृति नहीं है । इसमें आपसी प्रेम, भाईचारा, सौहार्द, समन्वय, सहिष्णुता आदि तत्त्वों का महत्त्व है। इस संस्कृति को ऐसे ही व्यक्तियों की अपेक्षा है, जो समय पर गहरी सूझबूझ से काम करें और अणी टाल दें।
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कुछ लोग बार-बार न्यायालय की बात उठा रहे हैं । न्यायालय के फैसले की अपनी गरिमा है । पर क्या दोनों पक्ष मिल-बैठकर कोई रास्ता नहीं निकाल सकते? आपसी वार्तालाप से जो समाधान निकलेगा, उसमें हार-जीत की पैंतरेबाजी नहीं होगी। वहां तो प्रेम का ऐसा दरिया बहेगा, जो भीतर के सारे कल्मष को धो-पोंछकर साफ कर देगा ।
समझौते की पृष्ठभूमि में एक पक्ष को यह सोचना होगा कि उसके साथ कभी कुछ भी हुआ हो, वह अपनी निष्ठा में छेद नहीं होने देगा। जिन ऊंचे आदर्शों में उसका विश्वास है, उनको वह कभी विस्मृत नहीं होने देगा | 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' यह नीति चलती होगी । पर धर्म के क्षेत्र में नहीं चलनी चाहिए ।
दूसरे पक्ष के लिए चिन्तनीय बिन्दु यह है कि जिस धरती पर वह रहना चाहता है, अपनी पीढ़ियों को रखना चाहता है, उसके प्रति अपनेपन का भाव रखना होगा। बीज अपनी अस्मिता को मिटाता है, तभी धरती में अपनी जड़ें जमाता है । यदि वह अपने अस्तित्व को बचाने का प्रयास करेगा तो विस्तार नहीं पा सकेगा ।
जो लोग समझौते के लिए माध्यम बन रहे हैं, उनका दायित्व है कि वे दोनों पक्षों को विश्वास में लेकर ऐसा रास्ता निकालें, जिससे भारतीय संस्कृति का गौरव अक्षुण्ण रह सके। हमारा विश्वास है कि देश की जैसी
११० : दीये से दीया जले
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