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________________ रहा है। इनके पल्लवन की ओर ध्यान ही कम जा रहा है। एक विद्यार्थी की स्कूल से कॉलेज तक की यात्रा में ऐसे संस्कारों का कितना विकास हो पाता है? इस प्रश्न को सही ढंग से उत्तरित करना बहुत कठिन है। विद्यार्थी को प्रारंभ से ही विनय और अनुशासन के संस्कार उपलब्ध होते रहें तो उनकी जीवनशैली में बदलाव या सुधार हो सकता है। पदार्थ, शिल्प, कला आदि के क्षेत्र में मनुष्य का दृष्टिकोण बदला है। अब वह प्राचीन वस्तुओं को आधुनिकता और फैशन के नाम पर स्वीकार कर रहा है। एक समय था, जब आम आदमी ग्राम्यजीवन जीता था। कालान्तर में सभ्यता को विकास की पगडंडियों पर धकेला गया। वेशभूषा बदली। आभूषण बदले । खाद्यपदार्थ बदले । जीवन के तौरतरीके भी बदले। नवीनता के व्यामोह में जो चीजें स्वीकृत हुईं, उनसे मन ऊब गया। फिर उसी दिशा में पांव बढ़ चले। इसे प्रगति कहा जाए या प्रतिगति? काश ! भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा कर पाता। पर इस विषय में सोचे कौन? व्यापारी अपने लाभ की बात सोचते हैं। एजेन्ट अपना हित देखते हैं। नए लेबल और नए नाम से आकृष्ट होकर मनुष्य अपने अतीत में डग भर रहा विनय और अनुशासन-जीवन के शाश्वत मूल्य हैं। इनकी उपेक्षा जीवन की उपेक्षा है। विद्यार्थियों में बढ़ती हुई उच्छृखलता, परिवारों में हो रहा बिखराव, समाज में बढ़ता हुआ दिखावा और देश में पांव फैला रही अराजकता एक धुंधले भविष्य का संकेत है। यदि मनुष्य चाहता है कि उसके अतीत से वर्तमान बेहतर हो और वर्तमान से भविष्य बेहतर हो, तो उसे विनय और अनुशासन को जीवन के साथ जोड़ना होगा। तेरापंथ धर्मसंघ का मर्यादा-महोत्सव प्रतीक है विनय और अनुशासन का। इनके आधार पर ही संगठन का प्रासाद खड़ा रह सकता है, दीर्घजीवी बन सकता है। वस्त्रों और आभूषण की तरह विनय और अनुशासन के संस्कार भी जीवन में लौट आएं तो युग को नई दिशा मिल सकती है। १०८ : दीये से दीया जले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003144
Book TitleDiye se Diya Jale
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1998
Total Pages210
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size9 MB
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