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४६. सापेक्षता है संजीवनी
भगवान् महावीर ने ढाई हजार वर्ष पहले सापेक्षता का सिद्धान्त दिया। उन्होंने कहा- 'वस्तु में अनन्त धर्म होते हैं। वे सब धर्म सापेक्ष रहकर ही अपनी उपयोगिता प्रमाणत कर सकते हैं। व्यक्ति भी अनन्त धर्मों का समवाय है। उसमें विरोधी युगलों की सत्ता है। वह सापेक्षता के सिद्धान्त को समझ ले तो उसके जीवन में कहीं कोई उलझन नहीं आ सकती। सामूहिक जीवन में तो सापेक्षता के बिना एक कदम उठाना भी कठिन है।' भगवान् महावीर का यह सिद्धान्त उस समय प्रासंगिक था। आज उसकी प्रासंगिकता बहुगुणित होती जा रही है।
परिवार, पार्टी, संघ, संस्थान कोई भी समूह हो, उसके सदस्य जितने सापेक्ष रहेंगे, संगठन उतना ही मजबूत होगा। आज चारों ओर बिखराव की स्थिति है। परिवार बिखर रहे हैं। दल टूट रहे हैं। धर्मसंघों में एकरूपता नहीं है, संस्थानों में व्यवस्थाएं ठीक नहीं हैं। कारण क्या है? अनेक कारण हो सकते हैं। निरपेक्षता सबसे बड़ा कारण है। हम पीया, हमारा बैल पीया, अब चाहे कुआं ढह पड़े-सामूहिक चेतना में यह कैसी मनोवृत्ति? यदि हमारा पड़ोसी दुःखी है तो क्या उसका प्रभाव हम पर नहीं होगा? व्यक्ति की स्वार्थ-चेतना को जब तक परार्थ या परमार्थ की दिशा नहीं मिलेगी, वह सापेक्ष होकर नहीं जी पाएगा। ___ एक ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने पास-पड़ोस में किसी का विकास देखना नहीं चाहता था। उसकी यह आकांक्षा थी कि उसका कोई भी पड़ोसी किसी भी क्षेत्र में उससे आगे न बढ़े। एक बार उसने किसी देवी की आराधना की। देवी प्रसन्न हुई। पर उसने एक शर्त रखी कि वह अपने लिए जो कुछ चाहेगा उसके पड़ोसी को उससे दुगुना मिलेगा। एक मकान, एक खेत, एक
सापेक्षता है संजीवनी : १०५
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