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हर चिन्तनशील व्यक्ति आगे बढ़ने के लिए अपने सामने एक आदर्श को प्रस्थापित करना चाहता है। आदर्श, पथदर्शक और पथ की सम्यक् अवधारणा ही सम्यक् दर्शन है। दूसरे शब्दों में विधायक दृष्टिकोण का नाम सम्यक् दर्शन है। जीवन के प्रति दृष्टिकोण को सम्या बनाने के लिए एक जीवनशैली के निर्धारण और प्रशिक्षण की अपेक्षा है। सामान्यतः हर व्यक्ति स्वस्थ और शक्तिसंपन्न जीवन जीना चाहता है। इस चाह की पूर्ति के लिए सम्यक् दर्शन की नितान्त आवश्यकता है। सम्यक् दर्शन की पहचान कराने के लिए पांच पैमाने निर्धारित किए गए हैं :
• क्रोध, अभिमान, छलना, लोभ आदि आवेगों का उपशमन । • लक्ष्य की दिशा में गतिशील रहने का रुझान। • जीवन को अभिशप्त बनाने वाली मनोवृत्तियों से वैराग्य। • मन में संवेदनशीलता और व्यवहार में करुणा। • सबके अस्तित्व में आस्था।
मनुष्य के आन्तरिक व्यक्तित्व को मापने वाले ये पैमाने सम्यक् दृष्टिकोण की कसौटियां हैं तो जीवनशैली को बदलने वाले महत्वपूर्ण घटक हैं। आत्मनिरीक्षण, आत्मपरीक्षण और आत्मनियंत्रण के आधार पर लक्ष्य की दिशा में होने वाले गत्यवरोध को तोड़ा जा सकता है।
मनुष्य अपनी दो आंखों से जगत् के स्थूल पदार्थों को देखता है। आंखें कभी उसे धोखा दे सकती हैं। आंखों देखा सच भी कभी-कभी झूठ प्रमाणित हो सकता है। किन्तु सम्यक दृष्टिकोण ऐसा तत्त्व है, जो अन्तर्दृष्टि के धुंधलेपन को दूर करता है। आईना साफ होता है तो प्रतिबिम्ब भी साफ आता है। इसी प्रकार दृष्टिकोण सम्यक् है तो जीवन का क्रम भी सम्यक् और व्यवस्थित हो सकता है।
साफ आईना : साफ प्रतिबिम्ब : १०१
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