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________________ 51 अनुयायी जान पड़ते हैं। जैनसाधना में योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नेमिनाथ और पार्श्वनाथ निश्चय ही गोरखनाथ के पूर्ववर्ती थे। भगवान महावीर के पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के नाम के साथ आज नाथ शब्द प्रचलित है, उससे यह तो ध्वनित होता ही है यह शब्द जैन परम्परा में काफी सम्मान सूचक रहा है। भगवान महावीर के नाम के साथ नाथ शब्द का प्रचार नहीं है। अत: इसे पूर्वकालीन परम्परा का बोधक मानकर ही यहाँ पर कुछ विचार किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ चौबीस तीर्थंकरों की जीवनगाथा पर अतीत काल से ही लिखा जाता रहा है। समवायांग में चौबीस तीर्थंकरों के नाम, उनके जीवन के महत्त्वपूर्ण सन्दर्भ सम्प्राप्त होते हैं और कल्पसूत्र, आवश्यक नियुक्ति, आवश्यक हारिभद्रीयावृत्ति, मलयगिरिवृत्ति, तथा चउप्पन महापुरिसचरियं, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, महापुराण, उत्तरपुराण उट्टङ्कित है। प्रान्तीय भाषाओं में भी और स्वतन्त्र रूप से भी एक-एक तीर्थंकर के जीवन पर अनेकों ग्रन्थ हैं। आधुनिक युग में भी 24 तीर्थंकरों पर शोधप्रधान दृष्टि से कितने ही लेखकों ने लिखने का प्रयास किया है। मेरे शिष्य राजेन्द्र मुनि ने प्रस्तुत ग्रन्थ में बहुत ही संक्षेप में और प्राञ्जल भाषा में 24 तीर्थंकरों पर लिखा है। लेखक का मूल लक्ष्य रहा है कि आधुनिक समय में मानव के पास समय की कमी है। वह अत्यन्त विस्तार के साथ लिखे गये ग्रन्थों को पढ़ नहीं पाता। वह संक्षेप में और स्वल्प समय में ही उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं, उदात्त चरित्र और प्रेरणाप्रद उपदेशों को जानना चाहता है। उन्हीं पाठकों की भावनाओं को संलक्ष्य में रखकर संक्षेप में 24 तीर्थंकरों का परिचय लिखा गया है। यह परिचय संक्षेप में होने पर भी दिलचस्प है। पाठक पढ़ते समय उपन्यास की सरसता, इतिहास की तथ्यता व निबन्ध की सुललितता का एक साथ अनुभव करेगा। उसे अपने महिमामय महापुरुषों के पवित्र चरित्रों को जानकर जीवन-निर्माण की सहज प्रेरणा मिलेगी-ऐसी आशा है। मैं चाहता हूँ लेखक अपने अध्ययन को विस्तृत करे। वह गहराई में जाकर ऐसे सत्य तथ्यों को उजागर करे जो इतिहास को नया मोड़ दे सकें। प्रस्तुत ग्रन्थ लेखक की पूर्व कृतियों की तरह जन-जन के अन्तर्मानस में अपना गौरवमय स्थान बनायेगा ऐसी मंगलकामना है। -आचार्य देवेन्द्र मुनि 30 नाथ सम्प्रदाय-हजारीप्रसाद द्विवेदी, पृष्ठ 190 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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