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________________ 38 के लिए यह सम्भव नहीं कि जैन ग्रन्थकारों के द्वारा एक तीर्थंकर से दूसरे तीर्थंकर के बीच में सुदीर्घकाल का अन्तराल कहने में उनका क्या अभिप्राय है, इसका विश्लेषण कर सकें किन्तु केवल इसी कारण से जैनग्रन्थों में वर्णित अरिष्टनेमि के जीवन वृत्तान्त को जो अति प्राचीन प्राकृत ग्रन्थों के आधार पर लिखा गया है, दृष्टि से ओझल कर देना युक्तियुक्त नहीं है। __दूसरे कारण का स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है कि भागवत सम्प्रदाय के ग्रंथकारों ने अपने परम्परागत ज्ञान का उतना ही उपयोग किया है जितना श्रीकृष्ण को परमात्मा सिद्ध करने के लिए आवश्यक था। जैनग्रन्थों में ऐसे अनेक ऐतिहासिक तथ्य हैं जो भागवत साहित्य में उपलब्ध नहीं है। कर्नल टॉड ने अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में लिखा है-"मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि प्राचीनकाल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं, उनमें पहले आदिनाथ और दूसरे नेमिनाथ थे। नेमिनाथ ही स्केन्डीनेविया निवासियों के प्रथम ओडिन तथा चीनियों के प्रथम 'फो' देवता थे। प्रसिद्ध कोषकार डाक्टर नगेन्द्रनाथवसु, पुरातत्त्ववेत्ता डॉक्टर फुहरर, प्रोफेसर बारनेट, मिस्टर करवा, डॉक्टर हरिदत्त, डॉक्टर प्राणनाथ विद्यालंकार प्रभृति अन्य अनेक विद्वानों का स्पष्ट मन्तव्य है कि भगवान अरिष्टनेमि एक प्रभावशाली पुरुष हुए थे। उन्हें ऐतिहासिक पुरुष मानने में कोई बाधा नहीं है। साम्प्रदायिक अभिनिवेश के कारण वैदिक ग्रन्थों में स्पष्ट नाम का निर्देश होने पर भी टीकाकारों ने अर्थ में परिवर्तन किया है। अत: आज आवश्यकता है तटस्थ दृष्टि से उस पर चिन्तन करने की। जब हम तटस्थ दृष्टि से चिन्तन करेंगे तो सूर्य के प्रकाश की भाँति स्पष्ट ज्ञान होगा कि भगवान अरिष्टनेमि एक ऐतिहासिक पुरुष थे। भगवान पार्श्व : एक ऐतिहासिक पुरुष ___भगवान पार्श्व के जीवनवृत्त की ज्योतिर्मय रेखाएँ श्वेताम्बर और दिगम्बरों के ग्रन्थों में बड़ी श्रद्धा और विस्तार के साथ उट्टकित की गई है। वे भगवान महावीर से 350 वर्ष पूर्व वाराणसी में जन्में थे। तीस वर्ष तक गृहस्थाश्रम में रहे, फिर संयम लेकर उग्र तपश्चरण कर कर्मों को नष्ट किया। केवलज्ञान प्राप्त कर भारत के विविध अंचलों में परिभ्रमण कर जन-जन के कल्याण हेतु उपदेश दिया। अन्त में सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर सम्मेत शिखर पर परिनिर्वाण को प्राप्त हुए। 70 जैन साहित्य का इतिहास -पूर्व पीठिका-ले० पं० कैलाशचन्द्र जी पृ० 170-17]! 71 अन्नल्स आफ दी भण्डारकर रिचर्स इन्स्टीट्यूट पत्रिका, जिल्द 23, पृ० 122 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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