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________________ 116 चौबीस तीर्थंकर प्रतिज्ञा करेंगे। काल को प्राप्त कर ऋषि अग्निदेव बनेंगे और अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेंगे। (यदि नागरिक मांस-मदिरा का सर्वथा त्याग करें और तप करते रहें तो नगर की सुरक्षा संभव है।) श्रीकृष्ण ने द्वारिका में मद्यपान का निषेध कर दिया और जितनी भी मदिरा उस समय थी, उसे जंगलों में फेंक दिया गया। सभी ने सर्वनाश से रक्षा पाने के लिए मदिरा का सर्वथा त्याग कर दिया और यथा-सामर्थ्य तप में प्रवृत्ति रखने लगे। ___ समय व्यतीत होता रहा और भगवान की चेतावनी से लोगों का ध्यान हटता रहा। जनता असावधानहोने लगी। संयोग से कुछ यादव कुमार कदम्बवन की ओर विहारार्थ गए थे। वहाँ उन्हें पूर्व में फेंक गयी मदिराकहीं शिलासंधियों में सुरक्षित मिल गयी। उन्हें तो आनन्द ही आ गया। छक कर मदिरा पान किया और फिर उन्हें विचार आया द्वैपायन ऋषि का; जो द्वारिका के विनाश के प्रधान कारण बनने वाले हैं। उन्होंने निश्चय किया कि ऋषि का ही आज वध कर दिया जाय। नगरी इससे सुरक्षित हो जायगी। ___ इन मद्यप युवकों ने ऋषि पर प्रहार कर दिया। प्रचण्ड क्रोध से अभिभूत द्वैपायन ने उनके सर्वनाश की प्रतिज्ञा करनी। भविष्यवाणी के अनुसार ऋषि मरणोपरान्त अग्निदेव बने, किन्तु वे द्वारिका की कोई भी हानि नहीं करपाये, क्योंकि उस नगरी में कोई न कोई जन तप करता ही रहता था और अग्निदेव का बस ही नहीं चल पाता। धीरे-धीरे सभी निश्चिन्त हो गए कि अब कोई खास आवश्यकता नहीं है और सभी ने तप त्याग दिया। अग्निदेवता को । वर्षों के बाद अब अवसर मिला। शीतल जन-वर्षा करने वाले मेघों का निवास-स्थल यह स्वच्छ व्योम तब अग्निवर्षा करने लगा। सर्व भाँति समृद्ध द्वारिका नगरी भीषण ज्वालाओ से भस्म समूह के रूप में ही अवशिष्ट रह गयी। मदिरा अन्तत: द्वारिका के विनाश में प्रधान रूप से कारण बनी। परिनिर्वाण जीवन के अन्तिम समय में भगवान अरिष्टनेमि ने उज्जयन्त गिरि पर 536 साधुओं के साथ अनशन कर लिया। आषाढ़ शुक्ला अष्टमी की मध्य रात्रि में, चित्रा नक्षत्र के योग में आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय कर्मों का नाश कर निर्वाणपद प्राप्त कर लिया और वे सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गए। __ भगवान अरिष्टनेमि की आयु एक हजार वर्ष की थी। धर्म परिवार 18 गणधर केवली 1,500 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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