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________________ भगवान अरिष्टनेमि मार्ग में सहसा वर्षा के कारण ये सभी साध्वियां और राजीमती भीग गयीं। वे अलग- अलग कंदराओं में शरण के लिए गयीं। राजीमती ने कन्दरा में जाकर अपने भीगे वस्त्र उतार कर सुखा दिए। तभी कामोत्तेजित रथनेमि पर उसकी दृष्टि पड़ी। रथनेमि पहले भी राजकुमारी राजीमती से विवाह करने का इच्छुक था, किन्तु राजीमती ने उसकी इच्छा को ठुकरा दिया। यहाँ रथनेमि ने कुत्सित प्रस्ताव राजीमती के समक्ष रखा। इस समय रथनेमि भी संयम स्वीकार किए हुए थे। राजीमती ने उसकी भर्त्सना करते हुए कहा कि त्यागे हुए विषयों को पुनः स्वीकार करते तुम्हें लज्जा नहीं आती? धिक्कार हैं तुम्हें ! राजीमती की इस फटकार से रथनेमि का विचलित मन पुनः धर्म में स्थिर हो गया । भगवान के चरणों में पहुँचकर रथनोमि ने अपने पापों को स्वीकार किया व आलोचना प्रतिक्रमण के माध्यम से आत्म शुद्धि की । कठोर तप से उसने कर्मों को नष्ट किया और अन्ततः वह शुद्ध - बुद्ध और मुक्त हो गया। भगवान की वन्दना कर राजीमती ने भी कठोर तप, व्रत, साधनादि द्वारा केवलज्ञान प्राप्त किया और निर्वाण पद का उसे लाभ हुआ । लोकहितकारी उपदेश भगवान लगभग 700 वर्षों तक केवली पर्याय में विचरण करते रहे और अपनी दिव्य वाणी से लोकहित करते रहे। भगवान का विहार क्षेत्र प्रायः सौराष्ट्र ही था । संयम, अहिंसा, करुणा आदि के आचरण के लिए प्रभु अपने उपदेशों द्वारा प्रभावी रूप से प्रेरित करते रहते थे। यादव जाति ने उस काल में पर्याप्त उत्थान कर लिया था, किन्तु मांसाहार और मदिरा की दुष्प्रवृत्तियों में वह ग्रस्त था। इन प्रवृत्तियों को विनाश का कारण बताते हुए उन्होंने अनेक प्रसंगों पर यादव जाति को सावधान किया था। 115 - भविष्य - कथन विचरण करते हुए एक बार प्रभु का आगमन द्वारिका में हुआ। श्रीकृष्ण भगवान की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने अपने मन की सहज जिज्ञासा प्रस्तुत करते हुए द्वारिका नगरी के भविष्य के सम्बन्ध में प्रश्न किया कि वह स्वर्गोपम पुरी ऐसी ही बनी रहेगी या इसका भी ध्वंस होगा ? भगवान ने भविष्यवाणी करते हुए कहा कि शीघ्र ही यह सुन्दर नगरी मदिरा, अग्नि और ऋषि - इन तीन कारणों से विनष्ट हो जायगी । Jain Education International श्रीकृष्ण को चिन्तामग्न देखकर प्रभु ने इस विनाश से बचने का उपाय भी बताया। उन्होंने कहा कि कुछ उपाय हैं, जिनसे नगरी को अमर तो नहीं बनाया जा सकता किन्तु उसकी आयु अवश्य ही बढ़ायी जा सकती है। वे उपाय ऐसे हैं जो भी नागरिकों को अपनाने होंगे। संकट का पूर्ण विवेचन करते हुए भगवान ने कहा कि कुछ मद्यप यादव कुमार द्वैपायन ऋषि के साथ अभद्र व्यवहार करेंगे। ऋषि क्रोधावेश में द्वारिका को भस्म करने की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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