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________________ 211 भगवान नमिनाथ (चिन्ह-कमल) कामदेव रूपी मेघ को दूर करने में महापवन समान, हे नमिनाथजिन! मेरे पापों को नष्ट करो। इन्द्रगण भी आपकी सेवा करते हैं, आपका शरीर कामदेव के समान सुन्दर है। सम्यक् आगम ही आपके सिद्धान्त हैं और सदा-सर्वदा शाश्वत हैं। __ भगवान नमिनाथ स्वामी 21वें तीर्थंकर हुए हैं। आपका अवतरण 20वें तीर्थंकर भगवान मुनिसुव्रत भगवान के लगभग 6 लाख पश्चात् हुआ था। पूर्वजन्म पश्चिम विदेह में एक इतिहास- प्रसिद्ध नगरी थी-कौशाम्बी। आदर्श आचरण और न्यायोचित व्यवहार करने वाला नृपति सिद्धार्थ उन दिनों वहाँ राज्य करता था। वह प्रजापालन में तन-मन-धन से संलग्न रहता था, किन्तु यह सब कुछ वह मात्र कर्त्तव्य-पूर्ति के लिए किया करता था। उसका मन तो अनासक्ति के प्रबल भावों का केन्द्र था। उसकी चिर-संचित अभिलाषा भी एक दिन पूर्ण हुई। राजा ने सुदर्शन मुनि के पास विधिवत् संयम स्वीकार कर लिया। अपनी उत्कृष्ट तप-साधना के बल पर महाराज सिद्धार्थ नामकर्म का उपार्जन किया। आयु के अन्त में सिद्धार्थ मुनि समाधिपूर्वक देह - त्याग कर अपराजित विमान में 33 सागर की आयु की आयुष्य वाले देव रूप में उत्पन्न हुए। जन्म-वंश उन दिनों स्वर्ग तुल्य मिथिला नगरी में विजयसेन नाम के नरेश राज्य कर रहे थे। उनकी अत्यन्त शीलवती, सद्गुणी रानी का नाम वप्रादेवी था। ये ही भगवान नमिनाथ के माता-पिता थे। सिद्धार्थ मुनि का जीव 10वां देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर वहाँ से निकला और रानी वप्रादेवी के गर्भ में भावी तीर्थंकर के रूप में स्थिर हुआ। वह शरदपूर्णिमा के (अश्विन शुक्ला पूर्णिमा) पुनीत रात्रि थी, उस समय अश्विनी नक्षत्र का शुभ योग था। गर्भधारण की रात्रि में रानी वप्रादेवी ने 14 मंगलकारी स्वरों का दर्शन किया, जो उसके तीर्थंकर की जननी होने का पूर्व संकेत था। संकेत के आशय को हृदयंगम कर रानी और राजा अतिशय हर्षित हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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