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________________ 12 आर्हत लोग यज्ञों में विश्वास न कर कर्मबंध और कर्मनिर्जरा को मानते थे । प्रस्तुत आर्हत धर्म को 'पद्मपुराण' में सर्वश्रेष्ठ धर्म कहा है। 15 इस धर्म के प्रवर्तक ऋषभदेव हैं। ऋग्वेद में अर्हन् को विश्व की रक्षा करने वाला सर्वश्रेष्ठ कहा है। " शतपथ ब्राह्मण में भी अर्हन् का आह्वान किया गया है और अन्य कई स्थालों पर उन्हें 'श्रेष्ठ' कहा गया है।” सायण के अनुसार भी अर्हन् का अर्थ योग्य है। श्रुतकेवली भद्रबाहु ने कल्पसूत्र में भगवान् अरिष्टनेमि व अन्य तीर्थंकरों के लिए 'अर्हत्' विशेषण का प्रयोग किया है।" इसिभाषियं के अनुसार भगवान् अरिष्टनेमि के तीर्थकाल में प्रत्येकबुद्ध भी 'अर्हत्' कहलाते थे। " पद्मपुराण और विष्णुपुराण" में जैनधर्म के लिए 'आर्हत् धर्म' का प्रयोग मिलता है। आर्हत शब्द की मुख्यता भगवान् पार्श्वनाथ के तीर्थकाल तक चलती रही। 22 महावीर - युगीन साहित्य का पर्यवेक्षण करने पर सहज ही ज्ञात होता है कि उस समय 'निर्ग्रन्थ' शब्द मुख्य रूप से व्यवहृत हुआ है। 23 बौद्ध साहित्य में अनेक स्थलों पर भगवान् महावीर को निग्गंथ नायपुत्त कहा है। 24 अशोक के शिलालेखों में भी निग्गंठ शब्द का उल्लेख प्राप्त होता है। 25 भगवान महावीर के पश्चात् आठ गणधरों या आचार्यों तक 'निर्ग्रन्थ' शब्द मुख्य रूप से रहा है। 20 15 आर्हतं सर्वमैतश्च, मुक्तिद्वारमसंवृतम् । धर्माद् विमुक्तेरर्होऽयं न तस्मादपरः परः ।। - पद्मपुराणा3 1350 16 ऋग्वेद 2|33|10, 2|3|1|3, 7|18|22, 10|2|2|, 99 | 7 | तथा 10|85|4, ऐ प्रा० 5|2|2|, शा० 15]4, 18 2, 23 | 1 ऐ० 4|10 173|4|1|3-6, तै० 2/8/6/9, तै० आ० 4/5/75/4/10 आदि आदि 18 कल्पसूत्र, देवेन्द्र मुनि सम्पादित, सूत्र 161 - 162 आदि 19 इसिभाषियं 1|20 20 पद्मपुराण 13|350 21 विष्णुपुराण 3 | 18 |12 22 (क) बाबू छोटेलाल स्मृति ग्रन्थ, पृ० 201 (ख) अतीत का अनावरण, पृ० 60 23 (क) आचाराङ्ग, 1|3|1|108 (ख) निग्गंथं पावयणं 24 (क) दीघनिकाय सामञ्ञफल सुत्त, 18121 (ख) विनयपिटक महावग्ग, पृ० 242 25 इमे वियापरा हो हंति त्ति निग्गंठेसु पि मे करे । Jain Education International - प्राचीन भारतीय अभिलेखों का अध्ययन, 26 पट्टावली समुच्चय, तपागच्छ पट्टावली, पृ० 45 For Private & Personal Use Only - भगवती 9/6/386 द्वि० खण्ड, पृ० 19 www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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