SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 11 भगवान श्रेयांसनाथ (चिन्ह- गेंडा) तीर्थंकर परम्परा में भगवान श्रीयांसनाथ स्वामी का ग्यारहवाँ स्थान है। अस्थायी ओर नश्वर सांसारिक सुखोपभोग के छलावे में भटकी मानवता को भगवान ने अक्षय आनन्द के उद्गम, श्रेय मार्ग पर आरूढ़ कर उसे गतिशील बना दिया था। श्रेयांसनाथ नाम को कैसा चरिताथ कर दिखाया था प्रभु ने! पूर्व जन्म भगवान श्रेयासनाथ स्वामी की विश्द् उपलब्धियों के आधार स्वरूप उनके पूर्वजन्मों के सुसंस्कार- बड़े ही व्यापक थे। पुष्करवर द्वीपार्द्ध की क्षेमा नगरी में महाराजा नलिनीगुल्म के गृह में ही भगवान का जीव पूर्वभव में रहा। महाराज नलिनीगुल्म वर्षों तक नीतिपूर्वक प्रजापालन करते रहे और अन्तत: आत्मप्रेरणा से ही उन्होंने राज्य, परविार, धन-वैभव सब कुछ त्याग कर संयम ग्रहण कर लिया। उन्होंने ऋषि वज्रदत्त से दीक्षा ली और अपनी साधना तथा उग्र तपों के बल पर कर्मों का क्षय किया। महाराजा नलिनीगुल्म का जीव महाशुक्रकल्प में ऋद्धिमान देव बना। जन्म-वंश महाराजा विष्णु सिंहपुरी नगरी में राज्य करते थे। उनकी धर्मपत्नी रानी विष्णुदेवी अत्यन्त शीलवती थी। यही राज- दम्पत्ति भगवान श्रेयांसनाथ के अभिभावक थे। श्रवण नक्षण में ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी को नलिनीगुल्म का जीव 12वां देवलोक से च्यव कर रानी विष्णुदेवी के गर्भ में स्थित हुआ। इतनी महान् आत्मा के गर्भ में आने के कारण रानी द्वारा 14 स्वप्नों का दर्शन स्वाभाविक ही था। स्वप्नों के भावी फलों से अवगत होकर माता के मन में हर्ष का ज्वार ही उमड़ आया। यथा-समय रानी विष्णुदेवी ने पुत्र-रत्न को जन्म दिया। वह शुभ घड़ी थी-भाद्रपद कृष्णा द्वादशी की। भगवान के जन्म से. संसार की उग्रता समाप्त हो गयी और सर्वत्र सुखद शान्ति का साम्राज्य फैल गया। बालक अति तेजस्वी था, मानो व्योम-सीमा से बाल रवि उदित हुआ हो। उसके शारिरिक शुभलक्षणों से उसकी भावी महानता का स्पष्ट संकेत किया करता था। इस बालक का माता के गर्भ में प्रवेश होते ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003143
Book TitleChobis Tirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajendramuni
PublisherUniversity of Delhi
Publication Year2002
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy