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________________ पुनर्जन्म ( संतों का स्थान, मुनि आसन पर विराजमान हैं, एक महिला संतोष अपने पुत्र महेन्द्र के साथ संतों को वन्दना कर रही है।) मुनिराज-आज मध्याह्न में कैसे आना हुआ बहिन ! और साथ में यह लड़का कौन है ? संतोष-मुनिराज ! यह मेरा बड़ा बेटा महेन्द्र है। इसको आपके श्रीचरणों __ की सन्निधि में लाई हूं। मुनिराज-लड़का तो ठीक लगता है । संतोष-वैसे तो ठीक है, लेकिन......। मुनिराज-लेकिन,..... क्या बात है कहो। संतोष-मुनिवर ! आपको तो पता ही है कि हमारा पूरा परिवार धर्म के रंग में रंगा हुआ है। दो वर्ष पहले तक इसमें भी धर्म के संस्कार थे । अब यह केरल में क्रिश्चियन कालेज में पढ़कर आया है। वहां कम्यूनिस्ट विचारधारा वाले लोगों के बीच रहकर यह पूरा बदल गया है। वकालात का अध्ययन कर रहा है, इसी कारण यह हर बात में तर्क करता है। धर्म से तो मानो इसको नफरत हो गई है। मैं सामायिक करती हूं तो मेरी खिल्ली उड़ाता है। उपवास करती हूँ तो मुझसे कहता है क्यों भूख निकालती हो, ये त्याग बेकार है, आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग, नरक की बाते शास्त्रों की गप्पे मात्र हैं। आप देखिये १० दिन से बराबर इसे आपके दर्शनों के लिये प्रेरणा दे रही हूँ किन्तु उत्साह ही नहीं है इसमें । आज भी आपके दर्शन करने के लिये नहीं, मेरे संकल्प को पूरा करने व मुझे राजी करने के लिये आया है। मुनिराज-(महेन्द्र से)-क्यों भई ! यही बात है ! महेन्द्र-झूठ क्यों बोलं, बात ऐसी ही है। मां मुझे कई दिनों से कह रही थी और आज तो इसने संकल्प कर लिया कि यदि तु संतों के दर्शन नहीं करेगा तो मैं भोजन नहीं करूंगी। ऐसी स्थिति में आना जरूरी हो गया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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