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चतुर्थ संस्करण के लिए अपनी बात
'बात-बात में बोध' का यह चतुर्थ संस्करण है। जैन-धर्म और दर्शन के विविध पहलुओं को बातचीत की शैली के द्वारा इसमें प्रस्तुत किया गया है। पाठकों द्वारा प्राप्त अभिमत ही इस कृति की उपयोगिता को सिद्ध करते हैं।
पिछले वर्ष ही इसका तीसरा संस्करण समाप्त हो चुका था। कल्पना नहीं थी, थोड़े समय में ही इसके तीन संस्करण समाप्त हो जायेंगे। श्रद्धेय गुरुदेव व आचार्यवर का आशीर्वाद ही था कि लोगों ने इस पुस्तक को स्वीकार किया। मैंने जिस लक्ष्य से इस कृति को तैयार किया था उसी के अनुरूप इसका उपयोग हुआ, इसकी प्रसन्नता है।
अणुव्रत भवन, नई दिल्ली २६, सितम्बर, १९९५
--मुनि विजय कुमार
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