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________________ जैन धर्म और विज्ञान मुनिवर-दुनिया प्रवाहपाती है। बहुतों के मन में धर्म, अधर्म, कर्तव्य, अकर्तव्य, उचित, अनुचित का चिन्तन भी नहीं होता। कइयों का लक्ष्य केवल आराम की जिन्दगी जीना, शरीर की हर मांग को पूरी करना, इन्द्रियों के चलाये चलना मात्र होता है । खान-पान व रहनसहन का भी इस जीवन पर प्रभाव पड़ता है, इसका विचार कुछेक व्यक्ति करते हैं। जब परिणाम सामने आता है तब ही आदमी अपने कृत्य के बारे में सोचता है। आसाम की घटना है-एक व्यक्ति अपने बूढ़े बाप का कंधा पकड़े चल रहा था। बाप ८० वर्ष के लगभग और बेटा ६० वर्ष के लगभग रहा होगा। किसी ने आश्चर्यवश पूछ लिया-यह उल्टा क्रम केसे ? बूढ़े बाप ने कहायह खाद्य संयम का ही प्रभाव है कि मैं ८० वर्ष की उम्र आने पर भी अपने को स्वस्थ अनुभव कर रहा हूँ और बूढ़ापे का मेरे पर कोई असर नहीं है । मेरा बेटा ६० वर्ष की उम्र में ही मेरे से ज्यादा बूढ़ा और रोगों का अजायबघर बन गया है। मेरे बेटे ने मांस, शराब, अण्डा आदि का सेवन कर असमय में ही अपनी जवानी को खो दिया जबकि मैंने आज तक इन पदार्थों को छुआ भी नहीं, शाकाहारी भोजन करता हूँ, नित्य धूमता हूँ और कुपोषण से बचता हूँ। बूढ़े बाप के कथन में सच्चाईं छिपी थी। जो व्यक्ति भोजन का विवेक रखते हैं और अभक्ष्य पदार्थों का परहेज करते हैं, उनका मन शांत रहता है और चिरकाल तक वे स्वस्थता का अनुभव करते हैं । व्यक्ति को दुनिया की ओर नहीं देखना चाहिए। मेरा अपना हित किसमें है, यह चिन्तन पहले होना चाहिए। जैन धर्म को भले ही कोई कष्ट साध्य या वर्जनाप्रधान कहे पर इसके सिद्धांतों को विज्ञान की कसौटी पर कसने से स्वतः सिद्ध हो जाता है कि उनका कथन कितना भ्रांतिपूर्ण है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डॉ० रमन्ना राजधानी दिल्ली में आचार्य वर के सम्पर्क में आये। जैन दर्शन को विशेष रूप से समझने के लिए आचार्यश्री ने उनको युवाचार्यवर के पास भेजा। युवाचार्यश्री से बातचीत के दौरान उन्होंने कई बार कहा-"जैन दर्शन का यह सिद्धान्त विज्ञान को भी मान्य है ।" न केवल वैज्ञानिक, नास्तिक कहलाने वाले लोग भी जैन दर्शन की वैज्ञानिकता को स्वीकार करते है। आचार्यवर के लखनऊ प्रवास में कम्यूनिस्ट नेता कॉमरेड यशपाल जो धर्म में विश्वास नहीं रखते थे, मिले। आचार्य वर से जैन दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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