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________________ ३२ बात-बात में बोध लकवा मार गया और चमड़ी सूज गई । लन्दन के डाक्टर एलेग्जेन्डर ने गहरी खोजबीन करके इस तथ्य को प्रकट किया कि मछली और मांस में यूरिक एसिड की मात्रा होती है। मांस, मछली के सेवन के साथ यह विष व्यक्ति के खून में मिलता है और टी. बी., जिगर, दिल की खराबी, श्वास की बीमारी, गठिया, हिस्टिरिया, सुस्ती व अजीर्ण आदि रोगों के उत्पन्न होने की सम्भावना को प्रकट करता है । मांसाहार निषेध के पीछे मनोवैज्ञानिक कारण भी है जैसे जिस पशु का मांस खाया जाता है उसके हिंसक या गलत संस्कारों का व्यक्ति में संक्रमण होना, मरते समय उस पशु की हाय का लगना । धूम्रपान निषेध भी आज के शरीर विज्ञान द्वारा सम्मत है । आजकल तो बीड़ी, सिगरेट के हर पैकेट पर यह वैधानिक चेतावनी भी लिखी होती है कि धूम्रपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसमें काम लिया जाने वाला पदार्थ है - तम्बाकू । विज्ञान की खोज से सिद्ध हो गया है कि तम्बाकू में चौबीस प्रकार के घातक विष होते हैं । जिनके कारण खांसी, टी. बी., आंतों में सूजन, लकवा तथा खून का पानी तक हो सकता है । इसमें एक निकोटिन विष तो इतना खतरनाक है कि कैंसर तक की सम्भावना बनी रहती है । एक शोधपूर्ण निबन्ध छपा था । उसमें बताया गया कि - सिगरेट युद्ध से भी ज्यादा नरसंहारक है। पहले और दूसरे विश्व युद्ध में ५ लाख ६५ हजार अमरीकी नागरिक मारे गये जबकि केवल सिगरेट के कारण इतने ही वर्षों के अन्तराल में ३० लाख व्यक्तियों की मृत्य हुई । अमेरीका में सन् १९६२ में प्रो० लूथर एल० टेरी की अध्यक्षता में एक ११ . सदस्यों की कमेटी बैठी, जिसने अपने रिपोर्ट में कहा था कि गले और फेफड़े के कैंसर से इसी वर्ष अमेरीका में ४१ हजार लोग मरे । उन्होंने यह भी बताया कि गले और फेफड़े के कैंसर का मूल कारण धूम्रपान ही है । इन पदार्थों के अलावा नशीली दवाइयां, अनेक प्रकार के ट्रेंक्वेलाइजर्स, ब्राण्डी, व्हीस्की व अनेक प्रकार के उन्मादक पेय पदार्थ जैन धर्म में वर्जित हैं । शरीर विज्ञान की दृष्टि से सब वर्जनाएं मान्य हैं। जो व्यक्ति चिरंजीवी और सुख की जिन्दगी जीना चाहते हैं उनके लिए ये सब नियम, उपनियम स्त्रीकार करने योग्य हैं । .. ओमप्रकाश - माना कि ये वर्जनाएं उपयोगी हैं पर दुनिया में बहुत सारे लोग तो ऐसे हैं जो इन नियमों का पालन किए बिना भी जी रहे हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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