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________________ जैन धर्म इस व्याख्या के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शंकर, राम, कृष्ण सभी वंदनीय हैं, अगर वे राग-द्वेष मुक्त हैं । विमल - ठीक, ठीक । अब समझ गया । प्रो० ओमप्रकाश - जैन धर्म की दूसरी विशेषता मुझे जो लगी वह है - सब आत्माओं में समानता व सबकी स्वतन्त्र सत्ता की स्वीकृति | बड़े जीवों की रक्षा के लिए छोटे जीवों को मारना हिंसा है व उनके अस्तित्व को नकारना है। इसी कारण जैन लोग अपने जीवन-निर्वाह के लिए अनावश्यक हिंसा से बचते हैं, आवश्यक हिंसा में भी कमी करने का प्रयास करते हैं। अगर विश्व में इन सूक्ष्म जीवों की मात्र अनावश्यक हिंसा रुक जाये तो पर्यावरण की समस्या का सहज समाधान हो सकता है । तीसरी विशेषता है -- जैन धर्म का पुरुषार्थवादी दृष्टिकोण । व्यक्ति स्वयं अपने भाग्य का निर्माता है । पुरुषार्थ के द्वारा वह अपने भविष्य को सुनहरा बना सकता है । कमल - क्षमा करें, एक बात बीच में पूछता हूँ । दुःख लिखा है, क्या पुरुषार्थ के द्वारा सकता है ? प्रो० ओमप्रकाश - खारे पानी को अगर मीठा बनाया जा सकता है तो दुःख को सुख में क्यों नहीं बदला जा सकता । भगवान महावीर की वाणी में दुःख-सुख की जननी स्वयं अपनी आत्मा है, कोई दूसरा नहीं । दुःख के क्षणों में भी अगर पुरुषार्थ सही दिशा में है तो व्यक्ति उसमें से भी सुख निकाल लेगा । हानि में भी लाभ ढूंढ लेगा । पुरुषार्थ गलत है तो सुख भाग्य में होने पर भी व्यक्ति दुःख का वेदन कर लेगा । सब कुछ होते हुए भी उसे अभाव खटकता रहेगा । तुमने दो मित्रों की बात तो सुनी होगी जिनमें एक राजा बनने वाला भिखारी बन गया और भिखारी बनने वाला राजा बन गया । - कमल -- कौनसी बात ? प्रो० ओमप्रकाश - तो सुनो! दो मित्र थे । ज्योतिषी ने उनकी हस्तरेखा देखकर एक को बताया कि तुम राजा बनोगे और दूसरे को बताया कि तुम भिखारी बनोगे ? राजा बनने का स्वप्न लेने वाला व्यक्ति अभिमानी बन गया। वह रात-दिन सुरासुन्दरी में लिप्त रहने लगा । सब तरह के व्यसनों में पड़ गया। अत्यधिक उन्माद के कारण वह विक्षिप्त सा रहने लगा। भिखारी बनना जिसकी किस्मत में लिखा Jain Education International किसी व्यक्ति के भाग्य में उसे सुख में बदला जा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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