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________________ बात-बात में बोध नन्द-सर, हमने गमीं की छुट्टियों में ट्यूर पर जाने के लिए नाम लिखाया था, किन्तु अब विचार बदल गया। मनोहर-फिर भी कोई कारण तो होगा। साफ-साफ कहो न । आनंद-सर, हमको जानकारी मिली है कि दो हरिजनों के विद्याथी भी उस ट्यूर में चलेंगे, वे अगर साथ होंगे तो हम लोग नहीं रहेंगे। मनोहर-ओहो ! अब बात समझ में आई। हरिजन विद्यार्थियों से तुमको एतराज है। पर तुम ही बताओ उनको हम कैसे रोक सकते हैं, वे भी मानवता के नाते हमारे भाई हैं। किसी जाति विशेष को अस्पृश्य मानना क्या अपराध नहीं है ! आज तो सरकार ने भी कानून बना दिया है कि किसी भी हरिजन या नीची जाति के व्यक्ति के साथ कोई छुआछूत या तिरस्कार करे तो वह दंडनीय है। तुम उनके साथ भोजन चाहे मत करो पर ट्यूर में उनको जाने से इन्कार कर दें यह कतई संभव नहीं। नन्द-उनको ले जाने के लिए हम इन्कार कहां कर रहे हैं, हम तो स्वयं के लिए ही इन्कार कर रहे है। आनंद-सर, आप कुछ भी कहें, हमारे संस्कारों से अभी छूआछूत की बात निकली नहीं है। मनोहर-पर संस्कारों में मोड़ भी तो लाया जा सकता है। आदमी चिन्तन शील प्राणी है। वह जड़ नहीं जो अपने में बदलाव ही न ला सके। चिन्तन के द्वारा जो सत्य लगे उसको बेझिमक स्वीकार कर लेना चाहिए। तुम ही बताओ क्या हरिजन कुल में जन्म लेने मात्र से कोई भी व्यक्ति घृणा का पात्र बन जाता है ! नन्द-धृषा का पात्र वह अपने घृणित कार्यों के कारण बनता है सर! वे लोग गंदगी को साफ करते हैं, खान-पान उनका शुद्ध नहीं होता, ऐसी हालत में उनका हमारे साथ मेल कसे सम्भव हो सकता है। मनोहर-गंदगी साफ करने के कारण अगर वे घृणास्पद हैं तब वो पूरी मातृ जाति घृणास्पद बन जाएगी क्योंकि हर मां को अपने बच्चे की गन्दगी साफ करनी ही पड़ती है। हमारे शरीर में कहीं कोई प्रकार की गन्दगी होती है, हम एक क्षण भी विलम्ब किए बिना उसे साफ करते हैं। क्या हम स्वयं दूसरों के लिए व अपने लिए घृणास्पद नहीं बन जाते हैं ! आचार्य कृपलानी हमारे देश के एक मूर्धन्य चिन्तक हो चुके हैं। इस संदर्भ में उनके जीवन का एक रोचक प्रसंग है। नन्द-सुनाइये, सर ! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003142
Book TitleBat Bat me Bodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size8 MB
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